ऐसा न हो कि चाँद मैं बन जाऊं !

अरे तुम कहाँ थे
तुमसे मिलने आया था मैं
अरे तुम कहाँ थे
फिर से खिलने आया था मैं
ना गीतकार हूं ना कवि हूँ
पर कुछ शब्द तो जानता हूँ
तुम कुछ तो हो मेरे लिए
शायद ऐसा मैं मानता हूँ
हर दिशा, कई दफा देखा मैनें
पर तुम कहीं भी न थे
इतने दिनों बाद आया
पर तुम कहीं भी न थे
प्रतिक्षारत रहाँ कुछ पल
पर कहीं निकलना था
चाँद तुम हो या मैं हूं
मुझे किसी नभ से मिलना था
अगर मैं चाँद होता तो
आस्ताँ पर मिल ही जाता
खैर मैं चाँद नहीं हूँ
पर तुम तो हो
मुझमें पूरा नहीं, पर थोड़ा सही
तुम गुम तो हो
आज की शाम देखा था
बड़े जंच रहे थे तुम
कहीं फिर मुलाक़ात ना हो
इसलिए बच रहे थे तुम ?
पर क्यों ही बचना
खेल क्यों ही रचना
वैसा ही नहीं हूँ जैसा पहले था
थोड़ा तो बदला हूं यार
जब मैं आऊँ तो मिल ही जाना
ऐसा मत करना अगली बार
इंतिशार मेरा यादें ही देगा
कुछ अधुरी बातें ही देगा
पर उस वक्त दोस्त कह कर
पुकारा तो था
फिर भी आज ना मिले
तुम्हे एक बात भी कही
थी कहना उससे
फिर भी ना मिले
तुमने कहा था तुम
तो बड़े नायाब हो
पर आज देखा मैनें
तुम कितने दस्तियाब हो
मुझे बुरा नहीं लगा
मेरा क्या है फिर आ जाऊंगा मिलने
फूल हूं दिन-रात का ,
मुर्झाता नहीं फिर आ जाऊंगा खिलने
मुझे जो कहना था वो शीत लहरों से कह आया
अलविदा था या फिर मिलेंगे, कुछ तो कह आया
अगली बार कहीं मिले तो
ऐसा ना हो कि चाँद मैं बन जाऊं
और तुम मुझ जैसे मिल ना पाओ
फिर वही मेरे जैसे शब्दों का
अनगाया सा गीत गाओ
पर मैं ऐसा नहीं करूंगा
जब आओ तब मिलूंगा
बस कहकर आना
ज़रा मुस्कुराते हुए आना

  • ईश शाह ( शायरीश)

poemकविता