होना न होना किसी का
ज्यादा फर्क नहीं करता
तुमसे प्यार करता हूं
कोई तर्क नहीं करता
तुम इस दीवाने की
दीवानीयत का किस्सा हो
तुम मेरे जिस्त का एक
अनोखा सा हिस्सा हो
तुमसे बहुत कुछ सीखता हूं
अब तुमसा ही दिखता हूं
तुम रूठी हुई भी सुंदर लगती हो
तुम्हें ही कविता में लिखता हूं
तुम पूरी एक दुनिया हो
जिसको में सजाना चाहता हूं
तुम्हारे हर एक पल को
मेरी जिंदगी में बसाना चाहता हूं
तुम्हे लगता है दूर हो जाएंगे हम
मैं तुम्हें ताउम्र हंसाना चाहता हूं
“तुम, हां तुम”—
सच में एक मयकदा हो
मेरे इस पतझड़ से मन में
एक रोशन सी अदा हो
कितना सुंदर यह आलम हैं
तुम्हारे इतने करीब हम है
पता है तुमसे मिलना
एक क्षितिज बनने जैसा है
तुम्हारा हाथ मेरे हाथ में
प्रीत के नए बीज जैसा है
एक कश्मकश में तुम मिलती हो
जैसे कोई रात में कली खिलती हो
तुम्हारे मन में कला समाई है
तुम सिर्फ होने से ही ज़मीं सिंचती हो
आंखों में प्रीत का सागर लिए
एक नया मंज़र जो रचती हो
तुम श्रृंगार को लगा कर
पाक उस श्रृंगार को करती हो
सुनो!
तुम मुझसे रूठना
मैं मनाता रहूंगा
तुम्हारे लिए सदा ही
प्रेम गीत गाता रहूंगा
तुमने मेरे समक्ष
प्रेम के फूल बिछाए हैं
तभी तो हम इतना
सब कुछ कह पाए है
मैं जानता हूं एक बात को
न छोड़ूंगा तुम्हारे हाथ को
कर लोगी सारे सपने पूरे
लिख लिया है इस बात को
और हां मैं जो लिखता हूं
अक्सर सच हो जाता है
एक शायर ने लिखा था
वह भी तुम्हारा हो जाता है
तुम अपनी महक में
ऐतबार एक लिए आई हो
तुम अपना अनोखा सा
एक किरदार लिए आई हो
अपने आसमान को एक चुम्बन दे देना
अपने सारे के सारे ही मुझे क्रंदन दे देना
मैं और तुम एक दास्तां लिखेंगे
एक सुंदर सा हसीं रास्ता लिखेंगे
तुम सच में एक हकीकत हो
तुम इश्क की मेरे वसीयत हो
मैं कहीं नहीं हूं
मैं हर वक्त सही नहीं हूं
पर हां ये तय है —
मैं तुम्हारा हूं
तुम्हारा “पहला “
तुम्हारा “दुबारा” हूं
तुम यहीं हो
हां !मेरी ही
तुम, तुम हां तुम्हें ही कह रहा
मैं तुम्हारे प्रेम का दीवाना हूं
जलता रहे ऐसा परवाना हूं
हां ! तुम्हारा होना मेरे लिए फ़र्क करता है
वह पागल है जो प्यार में तर्क करता है
माना थोड़ा सा तंग करता हूं
पर मैं तुम्हे सदा संग करता हूं
आती हो जब भी मिलने मुझसे
तुम्हें मुकम्मल प्रत्यंग करता हूं
ईश शाह