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बच्चों को सिखाएं आत्मनिर्भरता के गुण

बच्चों को सिखाएं आत्मनिर्भरता के गुण।

माता पिता संतान की हर जरूरत का ख्याल रखते हैं बच्चों के लिए माता-पिता से बढ़कर कोई शुभचिंतक नहीं होता, अपने प्रयासों से प्रत्येक माता-पिता अपने बच्चों को अच्छा पालन-पोषण अच्छी शिक्षा तथा अच्छा माहौल देने का प्रयास करते हैं जिससे कि उनके बच्चों को कोई तकलीफ या परेशानी ना हो जब बच्चे छोटे हो यानी शैशवावस्था से लेकर युवावस्था का समय (जन्म से 12 वर्ष तक) बच्चों की विशेष देखभाल का समय होता है इस अवस्था में माता पिता बच्चों की छोटी-छोटी जरूरतों जैसे- खान पान,स्कूल के लिए तैयार करना, समय पर स्कूल भेजना, स्कूल में बच्चों के रवैये पर ध्यान रखना, पढ़ाई के साथ साथ खेलने वाली गतिविधियों पर नजर रखना जरूरी है और यह होना भी चाहिए परंतु एक समय तक। जैसे ही बच्चे किशोरावस्था में प्रवेश करें उन्हें आत्मनिर्भर बनने की शिक्षा दें उन्हें इस उम्र में यह एहसास कराना जरूरी है कि अपने कार्यों से सही गलत नतीजों से उन्हें स्वयं निपटना होगा उस में माता पिता का सहयोग बच्चों को आत्म निर्भर और जिम्मेदार बनने से रोक सकता है।

कई बार माता पिता अपने बच्चों के लिए अनावश्यक चिंता करने लगते हैं जैसे स्कूल में बच्चों का किसी के साथ झगड़ा होने पर बेवजह चिंतित होना और स्कूल पहुंचकर हंगामा करना या खेलते समय चोट लगने पर आवश्यकता से अधिक चिंतित होना यह बात सच है कि प्रत्येक माता पिता को अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए सजग होना चाहिए परंतु जरूरत से अधिक ख्याल रखना आपके बच्चे के विकास में बाधक हो सकता है।

सिखाएं अनुशासन का गुण

बच्चों को बचपन से ही अनुशासन से रहना सिखाए छोटे छोटे काम जो वह खुद कर सकते हैं उसमे उनका सहयोग कर उनकी आदत खराब ना करें, बच्चा स्कूल बैग पैक करते समय अगर कोई किताब या कॉपी भूल जाता है तो उसे देने स्कूल ना बन जाए उसके बच्चे के मन में यह बात बैठ जायेगी कि उसकी गलती सुधारने के लिए आप हर समय उसके साथ हों प्रत्येक माता पिता को एक बात स्वीकार कर लेनी चाहिए कि माता पिता अपने बच्चों के साथ हर समय साया बनकर नहीं रह सकते इसीलिए बच्चों में शुरू से ही अनुशासन और संघर्षों से जूझने का गुण सिखायें जो हर मोड़ पर बच्चे के साथ रहेगा बच्चों की बैशाखी ना बने उन्हें आत्मनिर्भर बनना सिखाएं।

कैसे बनाएं जिम्मेदार

बच्चों को जिम्मेदार बनाने के लिए उन्हें स्वयं से कार्य करने दें बच्चे जब पहली बाहर कोई कार्य करेंगे तो शायद वह उनसे ना हो या खराब हो परंतु अच्छे बुरे कार्यों के परिणाम से निपटना उन्हें आना चाहिए जिससे बच्चों में अगली बार कार्य करने पर सतर्कता और अनुभव का विकास हो सके तथा सही गलत की समझ व जिम्मेदारी का भाव विकसित हो सकें।

बच्चों को डांट फटकार कर या दंड देकर जिम्मेदार नहीं बनाया जा सकता, किशोरावस्था शारीरिक व मानसिक बदलावों की अवस्था होती है इस अवस्था में माता पिता को उनके साथ दोस्ताना व्यवहार करना चाहिए दोस्त बनकर ही आप बच्चे के अंदर अनुशासन का भाव पैदा कर सकते हैं बच्चे अगर किसी मुश्किल में होते हैं तो माता-पिता के सामने दो विकल्प होते हैं पहला उन्हें डूबने से बचाने के लिए खुद उनकी मदद के लिए पहुंच जाएं और दूसरा उन्हें तैरना सिखा दें। पहला विकल्प अपनाकर शायद आप उस समय उस स्थिति से बच्चे को बाहर निकाल दें परंतु वह अपनी मुश्किलों व कठिनाइयों से स्वयं लड़ने में सक्षम नहीं बन पाएगा वहींं दूसरा विकल्प बच्चे को जिंदगी रूपी सागर से तैरना सिखा देगा और किसी भी परिस्थिति से बाहर निकलने के लिए कभी आपको उसके लिए चिंतित नहीं होना पड़ेगा।

अपने विचारों तथा अभिव्यक्तियों से दुनिया को अवगत कराने का सबसे अच्छा माध्यम है लेखन। लेखन में वह शक्ति होती है जो किसी को भी मात दे सकती है। एक लेखक में वह कला होती है, जो अपनी लेखनी से लोगों के दिलों पर राज कर सकता है। आज हम जिस लेखिका से आप का परिचय…

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