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बढ़ती उम्र में बच्चों के साथ कैसे करें व्यवहार।

बढ़ती उम्र में बच्चों के साथ कैसे करें व्यवहार।

माता पिता हमेशा अपने बच्चों को लेकर फिक्रमंद रहते हैं। वह अपने बच्चों के सुरक्षित भविष्य और बेहतर कल की कल्पना करते हुए अपना योगदान देते हैं। जब बच्चा बाल्यावस्था में होता है तो उसे विशेष देखभाल तथा संरक्षण की आवश्यकता होती है।परिवार के माहौल और आसपास के वातावरण का
बच्चो पर अधिक प्रभाव पड़ता है इसीलिए प्रत्येक माता पिता की यह कोशिश रहती है कि बच्चों को घर और बाहर अच्छा माहौल मिले।

बाल्यावस्था के बाद शुरू होती है किशोरावस्था जो 12-13 वर्ष से 18 वर्ष तक रहती है। यह अवस्था अत्यंत संवेगों और उलझनों की अवस्था होती है। किशोरावस्था में बालक में शारीरिक और मानसिक दोनों ही प्रकार के बदलाव होते हैं, जिसमें बालक के साथ मित्रवत व्यवहार करना आवश्यक होता है। बालक में हार्मोनल भी अनेक-अनेक बदलाव होते हैं जिसकी वजह से शीघ्र तनाव, क्रोध, संवेग, उत्तेजना, भय, भ्रमित होना आदि लक्षण प्रकट होते हैं, किशोरावस्था में बालक के साथ फ्रेंडली व्यवहार ना किया जाए तो बच्चे विद्रोही हो जाते हैं और गलत काम की तरफ अग्रसर हो जाते हैं।

भारतीय माता पिता की सोच होती है कि बालक को नियंत्रण में रखना सिखाया जाए, उज्जवल भविष्य की कामना के लिए भारतीय माता पिता पढ़ाई पर अधिक ध्यान देते हैं जिसकी वजह से बच्चे पर पढ़ाई का दबाव रहता है। हर माता-पिता की चाहत होती है कि उनका बच्चा टॉप करें, इससे बच्चे में पढ़ाई के दबाव और शारीरक बदलाव के चलते अधिक दबाव पड़ता है जिससे बच्चों में अवसाद, तनाव और विद्रोही जैसी समस्याएं उत्पन्न होने लगती है। समाज में बच्चे की योग्यता परीक्षा में मिले अंकों के आधार पर आंकी जाती है। आजकल अभिभावक बच्चों की आंतरिक क्षमता और संरचनात्मक (क्रिएटिविटी) को नहीं देखते और दूसरे बच्चों से अपने बच्चों की तुलना कर बच्चे पर दबाव बनाते हैं, इसी दबाव के कारण बच्चे कई बार गलत कदम उठाने की कोशिश करते हैं। शायद यह जानकर आपको आश्चर्य हो कि बच्चों और किशोरों में आत्महत्या की संख्या का स्तर भारत में सबसे अधिक है।

बढ़ती उम्र में माता-पिता को बच्चों के व्यवहार पर ध्यान देना चाहिए। कुछ तरीकों से पता लगाना चाहिए कि बच्चा तनाव में है या नहीं।

तनाव के लक्षण

1- शीघ्र गुस्सा आना-: किशोरावस्था में अधिक दबाव या तनाव के कारण बालक को शीघ्र गुस्सा आने लगता है और वह लोगों से बात करना या घुलना मिलना कम कर देता है।

2- अलग अलग रहना-: अगर आपका बच्चा आपसे दूर दूर रहता है और किसी बात में कोई रुचि प्रकट नहीं करता तो समझ लीजिए कि वह दबाव में है, ऐसी स्थिति में उसके साथ मित्रवत व्यवहार करके तनाव को दूर करने का प्रयास करना चाहिए।

3- विद्रोही होना-: बढ़ती उम्र में जब बच्चे को सपोर्टिव माहौल नहीं मिलता तो वह विद्रोही होने लगते हैंं और माता पिता की कही हुई प्रत्येक बात उसे बुरी लगने लगती है। ऐसी स्थिति में वह माता पिता की बात मानने से भी इंकार कर सकता है।

4- जल्दी-जल्दी बीमार होना-: अधिक तनाव के चलते बच्चे को सिर दर्द, पेट दर्द, नींद की कमी, खाने में अरुचि आदि शिकायत होने लगती है। ऐसे में बच्चा ना तो पढ़ाई पर ध्यान दे पाता है ना वह किसी चीज में रुचि रखता है।

5- गलत आदतें-: तनाव के चलते जब बच्चे अपनी मन की बात किसी के साथ शेयर नहीं कर पाते तो वह तनाव को दूर करने के गलत तरीके अपनाने लगते हैं। वह धूम्रपान, शराब की लत, नशे की लत आदि का शिकार होने लगते हैं

क्या करें माता पिता

1- मित्र बने-: बाल्यावस्था से ही बच्चे के लिए समय निकालें और उसके साथ मित्र बनकर हर समस्या का समाधान करें। मित्र बनकर ही आप बच्चे के करीब पहुंच सकते हैं ऐसी अवस्था में बच्चा आप से कोई बात छुपायेगा नहीं।

2- हौसला बढ़ाएं-: किसी क्षेत्र में बच्चा अगर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रहा है तो उसे उसकी कमजोरी का अहसास न करायें बल्कि उसका हौसला बढ़ाएं, सकारात्मक सोच बच्चे के मन में भरे तथा प्रत्येक काम की सराहना करें उससे बच्चा स्वतः ही मोटिवेट होकर अधिक मेहनत करेंगे और अपनी कमजोरियों पर काबू पा सकेंगे।

3- बच्चे को स्वीकारे-: किसी और बच्चे से तुलना कर के बच्चे को विद्रोही ना बनाएं क्योंकि सभी बच्चे अलग-अलग नेचर के होते हैं इसीलिए अपने बच्चे को उसकी अच्छाइयों और कमियों के साथ स्वीकार करें। बच्चे की क्षमता के अनुसार तथा रुचि के अनुसार ही उसे आगे बढ़ने दे, उस पर किसी भी प्रकार का दबाव ना बनाएं।

4- सृजनात्मक बनने देंं-: अगर बच्चा पढ़ाई के अलावा अन्य कार्य करने में रुचि रखता है तो उसकी सराहना करें तथा उस क्षेत्र में उसे आगे बढ़ने के लिए मोटिवेट करें, अगर वह किसी भी प्रकार के खेल में रुचि रखता है तो उसे खेलने का समय भी दें, खेलने से शारीरिक और मानसिक सुदृढ़ता के साथ तनाव दूर होता है और बच्चे के अंदर मिलकर रहने की भावना जागृत होती है।

5- घर में दे अच्छे बुरे की समझ-: बच्चों को बढ़ती उम्र के बदलाव तथा अच्छे बुरे के बारे में पता नहीं होता,ऐसे में बच्चे बाहर से सीखते हैं और उन्हें करने की कोशिश करते हैं, माता पिता को बच्चे के साथ मित्रवत व्यवहार रखते हुए अच्छे और बुरे की समझ देनी चाहिए जिससे वह गलत राह पर ना चल सके। घर के संस्कारों का बच्चों पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है बच्चे को दूसरों की मदद करने की प्रेरणा देंं तथा
सामाजिक बनाएं।

अपने विचारों तथा अभिव्यक्तियों से दुनिया को अवगत कराने का सबसे अच्छा माध्यम है लेखन। लेखन में वह शक्ति होती है जो किसी को भी मात दे सकती है। एक लेखक में वह कला होती है, जो अपनी लेखनी से लोगों के दिलों पर राज कर सकता है। आज हम जिस लेखिका से आप का परिचय…

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