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भारतीय संस्कृति में पितृ पक्ष (श्राद्ध) का महत्व

भारत में पित्रपक्ष की शुरुआत 5 सितंबर से हो गई है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार इस बार पितृ पक्ष की अवधि 15 दिनों तक रहेगी, पितृ पक्ष में अधिकतर हिंदू अपने पितरों का श्राद्ध करते हैं। श्राद्ध में मुख्य रूप से अपने पूर्वजों को याद किया जाता है तथा भोजन अर्पित किया जाता है। श्राद्ध का हिंदू संस्कृति में बहुत महत्व है। मान्यता है कि पितृ पक्ष में पूर्वजों का श्राद्ध करने से अपने पितरों को जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति प्रदान होती है तथा उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।

भारतीय संस्कृति में पितृ पक्ष (श्राद्ध) का महत्व

भारत में पित्रपक्ष की शुरुआत 5 सितंबर से हो गई है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार इस बार पितृ पक्ष की अवधि 15 दिनों तक रहेगी, पितृ पक्ष में अधिकतर हिंदू अपने पितरों का श्राद्ध करते हैं। श्राद्ध में मुख्य रूप से अपने पूर्वजों को याद किया जाता है तथा भोजन अर्पित किया जाता है। श्राद्ध का हिंदू संस्कृति में बहुत महत्व है। मान्यता है कि पितृ पक्ष में पूर्वजों का श्राद्ध करने से अपने पितरों को जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति प्रदान होती है तथा उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।

श्राद्ध क्या है

श्राद्ध का शाब्दिक का अर्थ श्रद्धा पूर्वक कर्म संपादन करने से होता है। स्कंद पुराण के अनुसार श्राद्ध में श्रद्धा विद्यमान है, पितरों के कल्याण के लिए श्रद्धा पूर्वक किए जाने वाले कार्य विशेष को ही श्राद्ध कहा जाता है। श्राद्ध भारतीय संस्कृति है इसमें हम जो सामाजिक और धार्मिक कर्म करते हैं उससे मोक्ष की प्राप्ति होती है। हमारे ऋषि-मुनियों ने गहन अध्ययन और मंथन के बाद संतान को अपने माता पिता की मुक्ति के लिए श्राद्ध और तर्पण का विधान बनाया है। वास्तविक रुप में हमारे जीवन में माता-पिता के अलावा भी अनेक व्यक्ति होते हैं जो हमें हमारे लक्ष्य तक पहुंचाने में सहायता प्रदान करते हैं। या जीवन जीने की कला सिखाते हैं। श्राद्ध हम अपने पूर्वजों के अलावा उस व्यक्ति का भी कर सकते हैं जिन्होंने कभी आपकी किसी भी तरह की सहायता की हो, जो आपके लिए आपके गुरु तुल्य या माता पिता के समान हो अपने पूर्वजों के अलावा उनकी भी मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जा सकता है। भेदभाव और स्वार्थ की भावना से परे होकर अन्य जीव जंतुओं या अन्य व्यक्तियों का श्राद्ध करना जो कि आपके जीवन में उपयोगी रहे हो आपकी विराट आत्मा को दर्शाता है।

श्राद्ध अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक 15 दिन का होता है, इसके अलावा इसमें पूर्णिमा के श्राद्ध के लिए भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को भी शामिल किया जाता है। इस तरह से श्राद्ध की संख्या कुल 16 हो जाती है।

श्राद्ध की आसान विधि

श्राद्ध के दिन जल में काले तिलों का इस्तेमाल करना चाहिए याद रखें सफेद तिलों का इस्तेमाल बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। सुबह स्नानादि करने के बाद जल में काले तिल, जौ, कुश, अक्षत, श्वेत पुष्प, चंदन व कच्चा दूध डालकर पूजा स्थल पर बैठ जाएं, पूजा स्थल पर पूर्व की तरफ मुंह करके बैठना चाहिए। उसके बाद दो कुश की पवित्री दाएं हाथ की अनामिका उंगली में तथा तीन कुश की पवित्री बाएं हाथ की अनामिका उंगली में धारण करके पितृ तर्पण का संकल्प लें। सभी देवी देवताओं और अपने पितरों का आह्वान करें। उंगलियों के अग्रभाग से 29 बार देव तर्पण या देवताओं को जल दें, वैसे मान्यता है कि 29 बार जल देने पर 29 अलग अलग मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए परंतु 29 मंत्र किसी को अगर याद नहीं है तो ऊँ ब्रहमा तृप्यताम् मंत्र का उच्चारण करके तर्पण किया जा सकता है। देव तर्पण के बाद 9 बार ऋषियों को जल दें, इसमें भी सभी ऋषियों के नाम नहीं ले सकते तो ऊँ नारदस्तृप्यताम् मंत्र का उच्चारण करते हुए जल दें।

हमारे धर्म शास्त्रों में जिस तरह सूर्य ग्रहण व चंद्र ग्रहण लगने पर कोई शुभ कार्य का शुभारंभ नहीं किया जाता उसी प्रकार विधान है कि पितृ पक्ष में भी माता पिता, दादा दादी के श्राद्ध के पक्ष के कारण शुभ कार्य नहीं करनी चाहिए। पितृपक्ष में श्राद्ध और तर्पण सामान्य तरह दोपहर लगभग 12 बजे करना सही माना जाता है, इसे घर के अलावा किसी तालाब या नदी किनारे भी किया जा सकता है। अपने पितरों का आवाहन करने के लिए भात, काले तिल व घी का मिश्रण करके पिंडदान व तर्पण किया जाता है। इसके बाद भगवान विष्णु और यमराज की पूजा अर्चना के साथ साथ पितरों की पूजा अर्चना भी की जाती है। श्राद्ध के दिन ब्राह्मण को भी घर पर आमंत्रित कर के पूर्वजों के लिए बनाया गया विशेष भोजन समर्पित किया जाता है, जिसमें अपनी सामर्थ्य और श्रद्धा के अनुसार ब्राह्मण को दक्षिणा के रूप में वस्त्र, मिठाई, फल आदि भी दिए जाते हैं।

पितृपक्ष में पिंडदान अवश्य करना चाहिए ताकि पितरों और देवों का आशीर्वाद मिल सके। पूजा के बाद भोजन को थाल में सजाकर गाय, कुत्ता, कौआ और चीटियों को खिला देना चाहिए। कोवे एवं अन्य पक्षियों द्वारा भोजन ग्रहण करने पर ही पितरों को सही मायने में भोजन प्राप्त होता है।

भारतीय धर्म ग्रंथों में मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण होते हैं। पितृ ऋण, देव ऋण और ऋषि ऋण जिसमें पित्र ऋण सर्वोपरि माना जाता है। पितृ ऋण में पिता के अतिरिक्त माता तथा वे सभी बुजुर्ग सम्मिलित होते हैं जिन्होंने हमें अपना जीवन धारण करने व उसके विकास में सहयोग प्रदान किया। पितृ पक्ष में तीन पीढ़ियों तक के पिता पक्ष के तथा तीन पीढ़ियों तक की माता पक्ष के पूर्वजों के लिए तर्पण किया जाता है। इन्ही को पितर कहा जाता है, जिस तिथि को माता-पिता या पूर्वजों का देहांत होता है उसी तिथि को पितृ पक्ष में उनका श्राद्ध किया जाता है।

अपने विचारों तथा अभिव्यक्तियों से दुनिया को अवगत कराने का सबसे अच्छा माध्यम है लेखन। लेखन में वह शक्ति होती है जो किसी को भी मात दे सकती है। एक लेखक में वह कला होती है, जो अपनी लेखनी से लोगों के दिलों पर राज कर सकता है। आज हम जिस लेखिका से आप का परिचय…

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