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एक दिन बुढापा आपको भी आएगा

एक दिन बुढापा आपको भी आएगा

वृद्धावस्था जीवन का वह सच है जिसके आगोश में हर किसी को आना है। भारत में वृद्धों की संख्या लगातार बढ़ रही है और घर वालों द्वारा की गई उनकी अवहेलना के आंकड़े भी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2050 तक दुनिया भर में 60 वर्ष की उम्र वाले लोगों की संख्या 11 फीसदी से से बढ़कर 22 फीसदी हो जाएगी। 2050 तक बुजुर्गों की आबादी 6 करोड़ से बढ़कर दो अरब हो जाएगी। इस रिपोर्ट को देखते हुए खुशी इस बात की होती है कि व्यक्ति की औसत आयु में वृद्धि हो रही है परंतु यह हम सब के लिए दुखद इसलिए है कि समाज में वृद्धों की उपेक्षा भी बढ़ रही है और उनकी बेकद्री हो रही है। अपनों की अपेक्षाओं के शिकार इन बुजुर्गों के चेहरे से मुस्कुराहट जैसे लुप्त ही हो गई है।

आधुनिकता की दौड़ में अंधी हो चुकी युवा पीढ़ी शायद भूल गई है कि एक दिन बुढ़ापा उन्हें भी घेरेगा। आज जो व्यवहार घर के अंदर वह अपने मां बाप या बुजुर्गों के साथ कर रहे हैं वह सब आपके बच्चे भी देख रहे हैं। व्रद्धावस्था उम्र का वह पढ़ाव होता है जहां अपनों के साथ, सहयोग व भावनात्मक स्तर पर उनका साथ देने की जरूरत होती है, वहींं उम्र के इस पड़ाव में बुजुर्गों को वृद्धाश्रम के हवाले कर दिया जाता है या नौकरों के हवाले। यही कारण है कि वृद्धावस्था में वृद्ध सहज महसूस करने की वजाय असहज महसूस करते हैं और बुढ़ापे को एक बीमारी समझते हैं। बुजुर्गों की होती इस दुर्दशा में सरकार को हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है। वृद्धों के लिए ऐसे कठोर नियम और कानून लाने की आवश्यकता है जिससे उम्र के
इस पड़ाव में बुजुर्गों को अपनी जिंदगी बोझ ना लगे।

वरिष्ठ नागरिक भरण पोषण अधिनियम का पालन

वृद्धावस्था में 35 फीसदी वृद्धों को अपनी बीमारी का खर्चा स्वयं बहन करना पड़ता है, एक तरफ उम्र की मार दूसरी तरफ बीमारी के खर्चे वहन करने की मार दोहरी मार से वृद्धों के अंदर जीने की चाहत खत्म हो जाती है। बुजुर्गों की सुरक्षा और संरक्षण का ध्यान रखते हुए वरिष्ठ नागरिक भरण पोषण
अधिनियम पास किया गया परंतु इस अधिनियम का पास होना ना के बराबर है। इस कानून का कितना पालन हो रहा है शायद यह बताने की आवश्यकता नहीं है। वृद्धावस्था में शारीरिक रूप से व्यक्ति कुछ काम करने की अवस्था में नहीं रहता जिस व्यक्ति को विशेष देखभाल की जरूरत होती है, उन्हें अपनों की अपेक्षाओं के कारण सड़कों पर भीख मांगने पर मजबूर होना पड़ता है।

बुजुर्गों को घेर लेता है अकेलापन

बुजुर्गों को धीरे धीरे अकेलापन घेरने लगता है, उनकी मानसिक स्थिति उन्हें अवसाद (डिप्रेशन) में ले जाती है, ऐसी स्थिति में उनके अंदर जीने की चाहत खत्म हो जाती है। बची जिंदगी काटना भी उन्हें भारी लगने लगता है, ऐसी परिस्थितियों में वह आत्महत्या जैसे कदम उठा लेते हैं। सोचने वाली बात यह है कि जिन बच्चों के भरण-पोषण, पढ़ाने और पैरों पर खड़े करने योग्य बनाने में अपनी पूरी जमा पूंजी, स्नेह और समय सब लुटा दिया उन बुजुर्गों के लिए आज घर में जगह तक नहीं है, उनके लिए दो वक्त की रोटी का भार आज के युवाओं पर इतना बढ़ गया है कि उन्हें वृद्धाश्रम के हवाले कर दिया जाता है।

बुजुर्गो के आशीर्वाद से बड़ा कोई आशीर्वाद नहीं होता

हमारे बुजुर्ग हमारे लिए पूजनीय हैं। बुजुर्गों का सम्मान करना हमारे संस्कार में होना चाहिए, जिस घर में बुजुर्गों की हंसी गूंजती है उस घर में कभी किसी चीज की कमी नहीं होती। घर का वातावरण सौम्य और सौहार्द से भरा होता है, सभी रिश्तो में प्यार व स्नेह देखने को मिलता है। बुजुर्गों द्वारा प्रसन्न मन से दिया गया आशीर्वाद किसी मोती से कम नहीं होता और प्रसन्न मन से दिया गया आशीर्वाद कभी खाली नहीं जाता। आशीर्वाद रुपी मोती को हम रोजाना बुजुर्गों की सेवा करते हुए पा सकते हैं, जिंदगी की यह अवस्था तमाम अनुभवों से भरपूर होती है, अपने अनुभव से बच्चों को दी गई सीख उन्हें जिंदगी के हर पड़ाव पर कुछ ना कुछ सिखा कर जाती है।

जिस घर को बनाने में इंसान ने अपनी पूरी जिंदगी लगा दी उसी घर में उसे हीन भावना और अपेक्षाओं का शिकार होना पड़ता है। दादा-दादी और नाना-नानी की छत्रछाया में पले-बढ़े बच्चों के अंदर संस्कार होते हैं संघर्षों से लड़ने की प्रेरणा मिलती है, लेकिन जिन बच्चों ने दादा दादी का प्यार पाया ही नहीं वह संस्कारों और संघर्षों की भाषा कैसे समझ सकते हैं। बुजुर्गों के साथ हो रहे इस व्यवहार के पीछे स्वार्थपूर्ण जीवन शैली और सोशल स्टेटस को माना जाता है। समाज में एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ और बड़ा दिखाने की आड़ में बुजुर्ग उन्हें अपने स्टेटस पर काला दाग नजर आते हैं। अपने स्टेटस को बनाए रखने के लिए बुजुर्गों को या तो अलग शिफ्ट कर दिया जाता है या वृद्धाश्रम भेज दिया जाता है।

बच्चों को दे रहे हो कौन सी सीख

जो बुजुर्ग उम्र के इस पड़ाव में अपनों की छत्रछाया में रहने चाहिए वह घुटन भरी जिंदगी जीने को मजबूर हैं। सम्मान का भाव कहीं से खरीदा नहीं जाता यह भाव तो संस्कारों में होता है, वृद्धा वस्था में अपने बुजुर्गों को छोड़ कर लोग कौन से संस्कारों का दिखावा करते हैं, यह लोग उन बुजुर्गों को वृद्धाश्रम में छोड़ बड़े ही गर्व से कहते हैं कि हमने अपने कर्तव्यों का पालन बड़ी सच्ची निष्ठा से निभाया है। जिन बुजुर्गों ने जन्म देकर जीने की राह दिखाई उनके प्रति सेवा भाव और सम्मान भूल जाना भारतीय संस्कृति पर ही नहीं पूरे मानव जाति पर कुठाराघात है। क्या लोग अपने बुजुर्गों के साथ करते इस व्यवहार के बीच भूल जाते हैं कि आपके बच्चे आप का ही अनुसरण कर रहे हैं, कल को जब बुढ़ापा आपको घेरेगा तो अपने बुजुर्गों के साथ की गई उपेक्षा की तस्वीर आपके सामने होगी फर्क सिर्फ इतना होगा कि सामने खड़े आपके माता पिता या बुजुर्गों के स्थान पर आप खड़े होंगे।

अपने विचारों तथा अभिव्यक्तियों से दुनिया को अवगत कराने का सबसे अच्छा माध्यम है लेखन। लेखन में वह शक्ति होती है जो किसी को भी मात दे सकती है। एक लेखक में वह कला होती है, जो अपनी लेखनी से लोगों के दिलों पर राज कर सकता है। आज हम जिस लेखिका से आप का परिचय…

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