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क्या और क्यों भारत में मुद्दे अंग्रेजी मीडिया ही तय करती है ?

भारत जैसे अद्भुत देश में मीडिया एक अहम किरदार निभाता है क्योंकि इस विशाल देश के हर कोने में हर क्षण कुछ न कुछ घटित होता है. चाहे कोई नई उपलब्धि हो या कोई राजनीतिक घटना , एक मीडिया ही है जो हमें उससे सम्बंधित जानकारी पहुंचाती है. इस अनोखे मीडिया जगत में भी बहुत सी विभिन्नताएँ आपको देखने को मिलेंगी क्योंकि ये देश विभिन्ताओं का देश जो है. हिंदी , अंग्रेजी से लेकर भारत की हर क्षेत्रीय भाषा सम्बंधित अनेक मीडिया हाउस आप असानी से खोज सकते है पर सवाल है की क्या भारत में अहम मुद्दे अंग्रेजी मीडिया ही तय करती है और ऐसा क्यों?

सवाल बेशक पेचीदा हो पर जवाब सिर्फ एक शब्द का है – ‘हाँ’. और ऐसा क्यों है तो इसके लिए मुझे थोडा भूतकाल और ढेर सारे वर्तमान का सहारा लेना पड़ेगा. कुछ लोगों को यह जानकर हैरानी होगी पहला अखबार जो कि स्वतंत्रता संग्राम के समय छपा वह था “बंगाल गज़ट” जिसे 29 जनवरी 1780 को एक अंग्रेज़ जेम्स ऑगस्टस हिकी ने निकाला जोकि पूर्णतः अंग्रेजी में था. इसके बाद अनेक अखबारों और पत्रिकाओं का प्रकाशन भी अंग्रेजी भाषा में ही देखने को मिला. इसका एक महत्त्वपूर्ण कारण यह रहा कि उस समय अंग्रेजी को ही बुद्धिजीवियों की भाषा समझा गया. तब शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी था और आज भी अंग्रेजी को ही उच्च समझा जाता है.

आज के समय में बेशक अनेक भाषाओँ में मीडिया उपलब्ध है पर हिंदी और अंग्रेजी अखबारों, पत्रिकाओं और न्यूज़ चनेलों को ही सबसे अधिक देखा और पढ़ा जाता है. यही एक कारण है की अंग्रेजी माध्यम को पूरे देश में सबसे अधिक लोकप्रियता प्राप्त है. अगर आप किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहें है तो आप ये फर्क महसूस कर पायंगे कि अन्य अखबारों को छोड़कर आपको सिर्फ अच्छे अंग्रेजी अखबार पढने की सलाह दी जाएगी और ऐसा करना आपके लिए अच्छा भी साबित होगा. अंग्रेजी अखबारों और पत्रिकाओं में आप मुद्दों से सीधे और स्पष्ट शब्दों में जुड़ाव महसूस करेंगे. इसके पीछे एक ही कारण है की हिंदी मीडिया नंबर एक पर बने रहने की होड़ लगी है और ऐसा सिर्फ अखबारों और पत्रिकाओं में ही नहीं टी.वी चनेलों पर भी हो रहा है. अधिक से अधिक खबरें परोसने के चक्कर में हिंदी मीडिया जरूरी मुद्दों को भूल इस रेस का हिस्सा बन रहा है. ज्यादा से ज्यादा दर्शक और पाठकों को आकर्षित करने के लिए हर हथकंडे को अपनाया जा रहा है और इस वजह से जो लोग इस बात को समझते है वो अपना रूझान अंग्रेजी मीडिया की ओर कर रहें है.

ऐसा नहीं है की अंग्रेजी मीडिया ऐसे हथकंडे नहीं अपनाता लेकिन अगर आप तुलना करेंगे तो आपको सीधे और साफ़ शब्दों समझ में आ जायेगा कि कौन सा मीडिया देश के मुद्दों से जोड़ता है. और आप ने अपने बच्चों को भी तो अंग्रेजी माध्यम से ही शिक्षा दिलवाई है क्योंकि आप अंग्रेजी के महत्तव को समझते है और इसमें कोई बुराई भी नहीं है. हिंदी को बेशक हम राजभाषा का दर्जा दे लेकिन हम भी जानते है की अंग्रेजी के बिना इस देश में अपनी छाप छोडना कठिन है. अगर आप दक्षिण भारत या पूर्वी भारत की बात करें तो अंग्रेजी या फिर वहा की क्षेत्रीय भाषा ही आपके काम आएगी. यानि की हिंदी मीडिया के मुकाबले अंग्रेजी मीडिया इस देश को जोड़ने का काम कर रहा है.

यानि की हिंदी और हिंदी मीडिया को अभी बहुत बड़े बदलाव की आवश्यकता है, इन मीडियाकर्मियों को देश से जुड़ने और अनावश्यक मुद्दों से बचने की जरूरत है ताकि पाठक और दर्शक इनकी ख़बरों को सवालिया नज़र से ना देखें. हमें भी हिंदी मीडिया के नए प्रयासों को सराहने और अपने आप में परिवर्तन लाने की आवश्यकता है क्योंकि मीडिया हमें वही परोस रहा है जो हम देखना या पढना चाहते है.

संजीव कुमार, हरियाणा के एक छोटे से जिले कैथल का रहने वाला और डिग्री से एक सिविल इंजिनियर. हिंदी से जुड़ाव दसवीं तक ही रहा लेकिन कॉलेज के बाद इसे मैंने अपनी जेब-खर्ची का साधन बना लिया. हिंदी से शायद कभी जुड़ाव खत्म ही नहीं हुआ इसीलिए मुझे ये पसंद है और इसे…

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