आसमान के तारे

आसमान के तारे

टिमटिमाते हैं रात भर तारे आसमान के,
मन को हैं बहलाते वो सारे जहान के,
जब देखता हूं मैं उन्हें यही सोचता हरदम,
हैं क्यों वहां वो रातभर ऐसे ही खड़े।

देखा जो मैंने गौर से कुछ कहने वो लगे,
ऐसा लगा जैसे वो हों किसी गोद में पड़े,
जलते हुए थे दीप वो एक प्यारा सा संगीत वो,
झिलमिलाते जा रहे थे और थे रंगीन वो।

जैसे ही मैं हंसने लगा संग हंसने वो लगे,
हाथों को फैलाए वो जैसे मेरी ओर बढ़े,
दिल था डरा सांसें थमी और रात थी काली,
बैठा था मैं एक मोड़ पे और जेब थी खाली।

जगमगाते दीप वो मुझे हीरे से लगे,
ऐसा लगे जैसे वो हों किसी चादर में जड़े,
यही सोचकर मेरे कदम बढ़ने फिर लगे,
रुकना नहीं आगे कहीं रहो मंजिल को चले।

कविता