Browsing author

Abhishek Shukla

कविता! मेरी जीवनसंगिनी है और साहित्य मेरा सखा। न लिखूं तो अकुलाहट होती है और लिखुँ तो कुछ और लिखने का मन। विधि विद्यार्थी हूँ तो समाज का प्रतिनिधि होना स्वाभाविक है, समाज की व्यथा और कथा दोनों लिखता हूँ। वैसे भी कहा गया है- "परोपकाराय वयम् अधिवक्तारः" संभवतः कुछ ऐसा ही.....पर परोपकार नहीं कर्त्तव्य निभाने के लिए अधिवक्ता और साहित्यकार प्रतिबद्ध होते हैं..मैं भी इस प्रतिबद्धता को निभाने का प्रयत्न कर रहा हूँ।