भगवान ही मालिक…इंदौर

भगवान ही मालिक…

इंदौर,
था यह शहर पुरजोर,
पड़ा मगर कमज़ोर ।

दौर हुआ शर्मनाक,
कट गई जैसे नाक,
लगे देश पर दाग़ ।

डॉक्टरों पर हमला,
सेवा का सिला !
किस बात का गिला ?

ईश्वर पर प्रहार,
कैसा अत्याचार ?
कलयुग का संसार ।

स्वास्थ्य कर्मचारी,
हैं सब पर भारी,
हम सब आभारी ।

इन पर भी वार,
हुआ बारम्बार,
लज्जा धिक्कार ।

पुलिस पर धावा,
किया खून खराबा,
ये मां और बाबा ।

किस बात का रोष ?
क्यों इतना क्रोध ?
कुछ तो कर बोध ।

जो सिपाही रक्षक,
उससे क्यों नफ़रत ?
दिल बहुत है आहत ।

क्यों किया ये पाप ?
जो ना कभी माफ़,
थी हिंसा साफ़ ।

क्या गया था मिल ?
था कृत्य बुजदिल,
मैं गया हूं हिल ।

दिया कैसा उदाहरण ?
भेस कैसा धारण ?
कांपा ना तन ?

वो ईंट और पत्थर,
रोए होंगे प्रचुर,
उनका क्या कसूर ?

आया कहां से धर्म ?
ये कैसा कर्म ?
बड़ा गहरा मर्म ।

क्या थी अफ़वाह ?
जो भटका राह !
निर्मम ये गुनाह ।

मौजूदा हालत,
है हिन्द पे कालिक,
भगवान ही मालिक…
भगवान ही मालिक…

स्वरचित – अभिनव ✍🏻

इंदौरकविता
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