बॉलीवुड एक गटर…

बॉलीवुड एक गटर…

बॉलीवुड एक गटर,
ऊपरी सतह गदर,
अंदर सब गड़बड़,
दलदल और कीचड़ ।

दोगला हर चेहरा,
सच सुन हुआ बहरा,
ज़मीर धंसा व मरा,
पाप का भरा घड़ा ।

नशे से हुआ लगाव,
उल्टा है बस बहाव,
ऊँचे ऊँचे ख़्वाब,
कितने ना जाने घाव !

दुल्हन के जैसा सजा,
ओढ़े हुए गजरा,
भीतर मगर खोखला,
ख़ुदका ही घोंटा गाला ।

बाहर रौनक बहार,
वास्तव चीख़ पुकार,
अकेला और सुनसान,
कटाक्ष व्यंग्य उपहास ।

पर्दे पर दे मिसाल,
नायक दिखे कमाल,
असली चरित्र बुरे हाल,
काली पूरी ही दाल ।

नौटंकी करें गजब,
मौन व्रत धारण सब,
सिल गए जैसे लब,
सबको बस मतलब ।

अन्याय का देते साथ,
ना कोई यहां बेदाग,
जड़ें हुईं बर्बाद,
कैसी डाली खाद !

मिटा दिए हैं सबूत,
शीशे के घर ख़ुद,
तोड़ें दूजा वजूद,
इनको भाए झूठ ।

पत्थर के ये दिल,
माया बस हासिल,
जैसे गिद्द व चील,
नोचें वैसे मिल ।

कहाँ कहाँ जुड़े तार !
भरे पड़े ग़द्दार,
लंबी बड़ी है कतार,
इन्हें चाहिएं अधिकार !

शर्मसार है यथार्थ,
छल कपट व स्वार्थ,
ना कोई सार व अर्थ,
दीमक लगी हर शाख़ ।

जिनको माना था आदर्श,
जिनसे जुड़ाव था अलग,
आज सिद्ध, मैं था ग़लत,
ये खलनायक हैं बस…
ये खलनायक हैं बस…

स्वरचित – अभिनव ✍

कविताबॉलीवुड