अभिनव कुमार – छद्म रचनाएँ – 13

उसको भी पता है कि ग़लत वही है,
लेकिन अटकी मुझपर ही सुई है,
कोई तो बतादे निष्पक्षता से,
क्या गलती मुझसे हुई है ।

अभिनव कुमार

वो ग़लत है,
फिर भी गदगद है,
कर रहा बस मनमर्ज़ी,
अब तो हद है ।

अभिनव कुमार

जमकर मुझे दुत्कार दिया,
मुझे जीते जी मार दिया,
एक नहीं यहाँ बहुतेरे हैं,
जिन्होंने बचपन से ये उपहार दिया ।

अभिनव कुमार

माथे पे लिखवाकर आया था,
कि मुंह की खाऊँगा सबसे ।
अब फ़र्क़ नहीं पड़ता जनाब,
आदत पड़ गई ये कब से ।

अभिनव कुमार

मुझपर दया बिल्कुल मत करना,
बिल्कुल बात मत मुझसे करना,
आदत पड़ जाएगी धीरे धीरे,
अब क्या जीना और क्या मरना ।

अभिनव कुमार

जमकर मुझे दुत्कार दिया,
मुझे जीते जी मार दिया,
एक नहीं यहाँ बहुतेरे हैं,
जिन्होंने मुझे ये उद्धार किया ।

अभिनव कुमार

शिकायतों की पाई-पाई जोड़कर रखी थी मैंने,
गिले शिकवों के भी रंगीन चश्मे हुए थे पहने,
वो आया और कसकर गले लग गया,
हिसाब बिगाड़ने वाले के क्या कहने, क्या ही कहने ।

अभिनव कुमार