समाज की कसौटी पर लिव इन रिलेशनशिप

समाज की कसौटी पर लिव इन रिलेशनशिप।

लिव-इन रिलेशनशिप एक विवादित मुद्दा है,जिस पर प्रत्येक व्यक्ति की अपनी अलग अलग राय और दृष्टिकोण है, लेकिन यहां हम बात करेंगे सामाजिक दृष्टिकोण की जिस समाज में हम रहते हैं या ये कहें जिस देश भारत में हम रहते हैं वहां लोग “लिव इन रिलेशनशिप” को किस नजरिए से देखते हैं इस मुद्दे पर आगे बढ़ने से पहले जान लेते हैं कि “लिव इन रिलेशनशिप” क्या है।

लिव इन रिलेशनशिप एक महिला और पुरुष के बीच बनाया गया वह रिश्ता है जो कि विवाह बंधन में बंधे बिना किसी शादी जैसे कानून को मानने बिना एक छत के नीचे पति पत्नी की तरह एक साथ रहता है इस रिश्ते में महिला व पुरुष पर कोई नैतिक दबाव या रिश्ते को जिंदगी भर निभाने की बाध्यता नहीं होती जब चाहे एक साथी इस रिश्ते से दूर जा सकता है लिव-इन रिलेशनशिप में एक दूसरे की सभी जिम्मेदारियां उसी तरह निभाई जाती है जैसे शादी के बाद।

अब बात आती है सामाजिक मान्यताओं की हमारा भारत देश जहां के हम वासी हैं वह अपनी संस्कृति तथा सभ्यता के लिए जाना जाता है जहां पर अलग अलग भाषाएँ, मान्यतायें, परम्परायें होने के बावजूद भी एकता नजर आती है इसीलिए भारत पूरे विश्व में विविधता में एकता का संदेश देने वाला पहला देश है। हमारे समाज में शादी एक पवित्र रिश्ता माना जाता है जो कि भगवान द्वारा बनाया गया बंधन होता है हालांकि यहां किसी भी व्यक्ति को स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है वह जैसे चाहे जिसके साथ चाहे अपना जीवन व्यतीत कर सकता है परंतु जब हम समूह में रहते हैं तो वहां के कुछ कायदे व कानून होते हैं इसीलिए शादी भी एक ऐसा रिश्ता है जो इस बंधन में बनने के बाद कानून के दायरे में आ जाता है जिन दो व्यक्तियों का विवाह होता है उनका रिश्ता अपने तक सीमित न हो कर दो परिवारों के बीच भी जुड़ जाता है। पति-पत्नी उन दोनों परिवारों की धुरी होते हैं इस रिश्ते में एक विश्वास एक वैधता होती है जो इस रिश्ते को आसानी से टूटने नहीं देती। शादी के बंधन में बंध कर लड़का व लड़की को एक साथ रहने की सामाजिक और कानूनी मान्यता प्राप्त हो जाती है जिससे वह सिर उठाकर समाज में रह सकते हैं साथ ही विवाह का बंधन पति पत्नी को काफी हद तक एक दूसरे के लिए ईमानदार रहने की प्रेरणा प्रदान करता है तथा पति पत्नी के अलावा एक दूसरे के परिवार के सदस्यों के साथ प्यार और भावनात्मक रुप से जुड़ने का मौका देता है।

वहीं लिव इन रिलेशनशिप किसी भी कानून या मान्यता से परे होता है जिसका कोई भविष्य नहीं होता चाहे तो वह सालों तक चल सकता है चाहे 4 दिन में टूट भी सकता है, रिश्ते शादी के बाद भी टूट जाते हैं लेकिन वहां एक गुंजाइश होती है एक दूसरे के परिवार की इज्जत की परवाह बच्चों के भविष्य की चिंता उस बंधन से इतनी आसानी से आजाद नहीं होने देती लेकिन लिव इन रिलेशनशिप में दोनों ही साथियों में अविश्वास की भावना बनी रहती है दोनों ही साथियों को बेहतर साथी मिलने पर कमिटमेंट टूटने का डर सताता रहता है जिससे वह आजादी भरी जिंदगी भी बोझ लगने लगती है।

आजकल युवा वर्ग इस तरह के रिश्ते में रहने के लिए किसी विवाह बंधन या कानूनी मान्यता को जरूरी नहीं समझते बड़े-बड़े शहरों में नौकरी करने वाले लड़के और लड़कियां शादी से पहले ही इस तरह के रिश्ते में रहना पसंद करते हैं। लिव इन रिलेशनशिप का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव तो यही होता है कि इस रिश्ते में कोई बंधन नहीं होता है 10 साल साथ रहने के बाद भी एक साथी दूसरे शाथी को छोड़कर जा सकता है लेकिन इतने समय लंबे समय तक बनाए गए इस तरह के रिश्ते किसी दूसरे व्यक्ति से इतनी आसानी से जुड़ने का मौका नहीं देते चाहे लोग कितने भी पढ़े लिखे या मॉडर्न हो जाएं चाहे जितनी सोच बदल लें लेकिन लिव इन रिलेशनशिप से अलग हुए महिला या पुरुष को कोई इतनी आसानी से नहीं अपनाता। शादी के बाद पति पत्नी के रिश्ते में जो मर्यादा तथा इज्जत होती है वह इस रिश्ते में नहीं होती पति पत्नी के रिश्ते में अपने बड़ों का आशीर्वाद हमेशा उनके साथ होता है रिश्ते में किसी मनमुटाव के समय बड़े अपनी भागीदारी से उस मनमुटाव को दूर करने में सहायता करते हैं परंतु लिव इन रिलेशनशिप में ऐसा नहीं होता।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने लंबे समय से लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे जोड़ों को राहत प्रदान की है तथा महिला को पुरुष साथी की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति में हिस्सा देने का अधिकार भी प्रदान किया है। लेकिन फिर भी समाज की नजर में यह रिश्ता वैद्य नहीं है।

लिव इन रिलेशनशिप
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