मैं नई दुनिया निर्माण करूंगा

मैं नई दुनिया निर्माण करूंगा

नहीं चाहिए कोई विरासत ना धर्म और न कोई आफत
चारों तरफ मचा कोलाहल मैं इसमें शांति बहाल करूंगा
मैं नई दुनिया निर्माण करूंगा….


बच्चा बच्चा होता सच्चा जो पका नहीं वो होता कच्चा
क्या है जीवन क्या उद्देश्य मैं इसकी भी पहचान करूंगा
मैं नई दुनिया निर्माण करूंगा….

अकड़ रहे हैं यहां पे अपने द्वेष भरे हैं इनके सपने
क्यों फूल बन गए हैं अंगारे मैं इनका मुग्द गान बनूंगा
मैं नई दुनिया निर्माण करूंगा….

जो जीवन में है सफल आज फिर क्यों हो जाता विफल बाद
समंदर क्यों हैं घुले हुए क्यों हैं मंदिर यहां घिरे हुए
मैं क्यों जीवन बर्बाद करूंगा….
मैं नई दुनिया निर्माण करूंगा….

कविता