ज़िन्दगी तू ही बता तुझ पर, कैसे एतबार करूँ

ज़िन्दगी तू ही बता तुझ पर, कैसे एतबार करूँ।
कोई तो वजह हो ऐसी, कि तुझसे प्यार करूँ।

हर ख़्वाब, हर ख्वाहिश तो, तूने तोड़ दी मेरी।
बता ख़ुद को जीने के लिए, कैसे तैयार करूँ।

मेरे हर रास्ते पर तूने, कांटे ही कांटे सजा दिए।
इतने दर्द के बाद भी, मैं कैसे ये रास्ते पार करूँ।

महफिलों से उठाकर, मुझको तन्हा कर दिया।
अब तन्हा कैसे किसी से, मैं आँखे चार करूँ।

जितना दर्द तूने दिया, शायद मौत भी न देगी।
तू ही बता यकीं तुझ पर , कैसे बार- बार करूँ।

ज़िन्दगी तू ही बता तुझ पर, कैसे एतबार करूँ।
कोई तो वजह हो ऐसी, कि तुझसे प्यार करूँ।

कविता