आऊंगा फ़िर, पाप करने ख़तम …

आऊंगा फ़िर, पाप करने ख़तम …

है माखन चोर,
मेरा नन्द किशोर,
जैसे नाचे मोर,
उसका ही दौर ।

नटखट हैं कान्हा,
सबको है थामा,
हर युग ने माना,
ब्रज की वो आभा ।

आज उनका जन्म,
पर्वों का पर्व,
भारत को गर्व,
ये सच्चा धर्म ।

आस्था एवं श्रद्धा,
उल्लास से मनता,
सबकुछ ही रमता,
हर और है समता ।

वो बाल गोपाल,
थे यशोदा लाल,
मित्र संग धमाल,
होली व गुलाल ।

देवकी वासुदेव,
से हुए उत्पन्न,
था मामा कंस,
दैत्य विध्वंस ।

ख़त्म करने ज़ुल्म,
अवतार या जन्म,
जाए अन्याय थम,
हुए कृष्ण प्रकट ।

करते जब ग़ौर,
नहीं थे फ़िर छोड़,
था लक्ष्य बेजोड़,
मटकी दें फोड़ ।

वो बाल गोविंदा,
ना कोई चिंता,
हर दिल में ज़िंदा,
इंसां या परिंदा ।

उनके संदेश,
लें दिल में समेट,
चाहे अनुज या ज्येष्ठ,
स्नेह प्यार समावेश ।

दोस्ती की मिसाल,
ना कोई गुमान,
दिल बहुत विशाल,
रखा सबका ख़्याल ।

था प्रेम आलौकिक,
पावन व घनिष्ठ,
जाएं राधा दिख,
ना स्वार्थ तनिक ।

अर्जुन के सारथी,
वे गुरु व साथी,
अर्जुन की ख्याति,
उनकी ही कृपा थी ।

दिया गीता सार,
कर्म ही आधार,
यदि अच्छे भाव,
फ़िर सब साकार ।

दे दिया वचन,
दुष्ट जाएं गर बड़,
लूंगा पुनर्जन्म,
पाप करने अंत ।

स्वरचित – अभिनव

कविता