अजय महिया छद्म रचनाएँ – 2

वो कहने लगे हम‌ सुनने लगे
किसको पता था वो इतना कह देंगे
अरे! हम तो तन्हाइयों की गली मे बैठे थे
किसको पता था गली भी बेवफा निकलेगी

अजय महिया – इश्क का राही

इश्क तेरे दरबार से तकरार न हो,, अब मै महफुज़ हूं
तेरा खुदा बख्शे जिन्दगी मेरी , मै तेरे ही मज़ार‌ मे हूं

पागल करे महबूब मेरा ,किसी को अपनी मोहब्बत मे
मै नीले नभ मे ,तरनि का संचार‌ हूं
क्योंकि मै संगीतकार‌ हूं ,क्योंकि मै संगीतकार हूं

संगीत‌ ही महबूब मेरा ,संगीत ही दिलो-जान ,अरमान है
जिसने भी पूजा की मेरे महबूब की , वो ही उस्ताद नुसरत खान है

अजय महिया – इश्क का राही

मै‌ हर पल ख्वाब सजता हूं ,ना जाने वो क्या करती है ।

ख्वाहिशें,सपने सब तो हैं ,पर ना जाने वो कहां रहती है ।।

अजय महिया – इश्क का राही

क्या और क्यों पुछता‌ है
दुसरो से कि हम कैसे है
मेरी निगाहों से पुछ ले ओ जालिम
‌ ‌कि ये कितने सपने सजाती है
संगीत की किताब से कह देना
कि मुझे उसकी याद बहुत आती है

अजय महिया – इश्क का राही
कविता