अज़य महिया छद्म रचनाएँ – 17

जब तू आएगी फिर से मेरे दिल-ए-द्वार पर,कसम से दरवाज़े बंद मिलेंगे

अज़य महिया

खुबसूरती किसी अमीरी की मोहताज़ नही होती है,
गरीबी मे भी खूबसूरती के चराग जलते देखे है |

अज़य महिया

मुझे तेरी जुल्फों में रहने की आदत हो गई है
मुझे तुमसे मोहब्बत हो गई है

अज़य महिया

दोस्ती का इम्तिहान अभी बाकी है
ये दिल-ए-जज़्बात अभी बाकी है
मिल जाए कोई साथ रहने वाला
पथिक का मकान अभी खाली है

अज़य महिया

हुस्न की हवस मिटाने को,मन की प्यास बुझाने को |
ये नये ज़माने का प्यार है,नहीं कोई दिल लगाने को

अज़य महिया

कोई तकलीफ़ देकर मरता है,कोई तकलीफ़ लेकर मरता है
क्यों न तकलीफ़ों से सीखें,कि तकलीफ़ देती है कुछ लेकर

अज़य महिया

कहीं नहीं,कभी नहीं,बस तेरे सिवा कोई चेहरा देखूं
दिल-ए-अरमान बस एक है मरते वक्त तुझे देखूं

अज़य महिया

जीवन बोझ लगने पर नकारा बन जाता है
दोस्त बेवफा होने पर नासूर बन जाता है

अज़य महिया

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