दिल का ठिकाना – कविता – शशिधर तिवारी

जिसके लिए था, मुझे काजल कमाना,
उसने ही बदल दिया “दिल का ठिकाना” !!!

तेरे लिए तो मैं झुका देता सारा जमाना,
तू ही तो थी मेरी हर खुशियों का खजाना !!
तेरे साथ ही तो था मुझे घर बसाना,
आज पड़ रहा है तेरी ही डोली सजाना !!
जिसके लिए था, मुझे काजल कमाना,
उसने ही बदल दिया “दिल का ठिकाना” !!

प्यार का लगता था मुझे हर सफर सुहाना,
कह देना उसे एक दीवाना मेरा भी है पुराना !!
मेरी कामयाबी पे तू भी ढोल बजाना,
फिर किसी और के दिल को यू न सरे-आम दफनाना !!
जिसके लिए था, मुझे काजल कमाना,
उसने ही बदल दिया “दिल का ठिकाना” !!

किसी और को भी न ऐसे प्यार में ठहराना,
फिर किसी और के लिए यू तू न मुस्कुराना !!
तुम तो थी मेरी किताब की पहली प्रस्तावना,
तुम्हे दोबारा लिखने की नहीं है अब कोई संभावना !!
जिसके लिए था, मुझे काजल कमाना,
उसने ही बदल दिया “दिल का ठिकाना” !!

तेरे बिना तो मेरी जिंदगी लगती है वीराना,
खुशनसीब मैं इतना नहीं की तू लौट आए करके कोई बहाना !!
देख लेना पछ्तायेगी तू अपने फैसले पर, भरेगी हर्जाना,
कभी बिना हेलमेट के तू उससे गाड़ी न चलवाना !!
जिसके लिए था, मुझे काजल कमाना,
उसने ही बदल दिया “दिल का ठिकाना” !!

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