होली – कविता

होली

फिर मादकता की अंगड़ाई लेकर ,
होली का पर्व आया है
आम्र कुंज से मुखर मुकुल का ,
सौरभ पवन स्वयं लाया है ||


भूमि पर ज्योति की बांसुरी बजाने
फूल के गांव में पांखुरी खिलाने
हर किरन के अधर पर ,
सरस तान यह लाया है
फिर मादकता की अंगड़ाई लेकर ,
होली का पर्व आया है ||


मदन सखा सुकुमार मनोहर ,
काम लिये यह आया है
लाया है व्योम से मदभरा प्यार
मुरझाए मन में खुशियां लाया है
प्रकृति प्रेयसी प्रेम लिए ,
सुरभि मधुमयी पवन संग लाया है
फिर मादकता की अंगड़ाई लेकर,
होली का पर्व आया है ||


झूमी कुसमित हो वल्लरियां
मानस उपवन की सुन्दरियां

तरु शाखाएं झूम उठी
पिक शुक मैनायें कूक उठीं
धरा को सुधा रस में साने
पवन में बहाये रंगो के अफ़साने
शुचि प्रेम मानवता के संकल्पों को
जन जन के ,ह्रदय में उतारने आया है
फिर मादकता की अंगड़ाई लेकर
होली का पर्व आया है ||

कविता