ज़रा तुम इंसान को तो इंसान मान लो !!

बाजार में सब देखते रहे नजारा
किसी ने नहीं देखी बच्चे की तरसती नज़र !
अरे इंसान नहीं पत्थर है इस शहर में
किसी के मरने से भी होता नहीं असर !!

इंसान कुत्ता को महंगा खाना खिला रहा
एक मासूम बच्चा तरस रहा रोटी को !
खुद को भूखा रहने की परवाह नहीं है
वो तो खिलाना चाहता है बहन छोटी को !!

इंसान मंदिर में चढ़ा रहा कीमती भोग
एक माँ रोटी के लिए हाथ रही फैला !
क्या उस माँ के लिए उनके पास कुछ नहीं
जो बाजार से लाते सामान भर-भर थैला !!

मौत से होता मातम दिखावे के लिए
किसी के मरने से किसी को फ़र्क नहीं होता !
जिंदगी से ही परेशान है बहुत से लोग
मौत को बुरा कहना कोई तर्क नहीं होता !!

कोई बहुत बड़ी बातें नहीं करता ‘मिर्ज़या’
और ना ही कहता है कि मुझसे ज्ञान लो !
भगवान को मानने से पहले ए-दुनियावालो
ज़रा तुम इंसान को तो इंसान मान लो !!

✍️ “मिर्ज़या साहवा”

कविता