ख़ुद को दिया धोखा …

ख़ुद को दिया धोखा …

इस गणतंत्र दिवस,
किसान वाकई बेबस ?
लिया देश को डस,
रहा विश्व है हँस !

शर्मसार हुई दिल्ली,
उड़ी बहुत है खिल्ली,
क्या यही आज़ादी ?
की बहुत बर्बादी ।

तिरंगे की मर्यादा,
सीना छलनी, है काटा,
देश टुकड़ों में बांटा,
नम आज विधाता ।

हाथों में डंडे,
ये कैसे हथकंडे ?
जो अमन के बंदे,
आज बदनुमा गुंडे ।

ये कैसा फंदा ?
क्यों है अराजकता ?
क्या मज़ाक है भद्दा ?
सर नहीं क्या झुकता ?

ये कैसी रैली ?
हिंसा बस फ़ैली,
गंगा फ़िर मैली,
हवा हुई ज़हरीली ।

खलनायक ट्रैक्टर,
रौंद रहा शय हर,
दिखे राक्षस असुर,
मचाया आतंक डर ।

आज शास्त्री जी होते,
जाने कितना रोते,
‘जय किसान’ के नारे,
क्यूँ दिए – होते सोचे ?

लगा काला धब्बा,
चीरा दिल है रब का,
क्या मक़सद होगा ?
ख़ुद को दिया धोखा …
ख़ुद को दिया धोखा …

स्वरचित अभिनव✍🏻 – भारतीय नागरिक 🇳🇪
जय हिंद 🙏🏻

कविताकिसानदेश