कुछ कहने को तो है मेरे पास भी…

कुछ कहने को तो है मेरे पास भी…

कुछ कहने को तो है मेरे पास भी…
पर कोई सुनने वाला नहीं मिला…
सोचे शायद कोई अजनबी ही हाले दिल सुन लेग
लहरों का शोर इतना बढ़ गया…
की खामोशियों से नाता टूटता चला गया…
किसी के साथ ऑडी में पेट्रोल भरवाया…
किसी का ऑटो फ़ेयॅर कम करवाया…
जब रात के सन्नाटे से गुफ़्त-गू करनी चाही…
तो उसे बगल वाले मुल्क में सोता पाया…
सपने अब मुझे याद नहीं रहते…
और अतीत के किससे अब मेरे साथ नहीं रहते…
लेकिन इस तरह जीना नहीं सिखाया था उसने…
लेकिन इस तरह जीना नहीं सिखा था ’मैंने’…
इक दिन, कहीं दूर से किसी ने कँधे पर रखा हाथ…
जब पलट कर देखा – तो…
गम के हाथों में कैद पड़ी थी ज़िंदगी..

Comments (0)
Add Comment