मित्र तो ज़रूर हों

मित्र तो ज़रूर हों

बेशक चाहे कम हों,
पर मित्र तो ज़रूर हों ।
समझने का दम हो,
चाहे कोसों दूर हों ।

हमराज़ हों, हमदम हों,
और विश्वास भरपूर हो ।
आंखें जब नम हों,
वे पर बेकुसूर हों ।

धरती हो या नभ हो,
उनसे ही बस नूर हो ।
वे जैसे मरहम हों,
छूते ही पीड़ा दूर हो ।

चाहे कोई भी गम हो,
न्यून करने में मशहूर हों ।
मैं शब्द, वे कलम हों,
बस तालमेल भरपूर हो ।

अच्छे अगर कर्म हों,
यारों का फ़िर हुजूम हो ।
काश एक ही हमदर्द हो,
पर कोई तो मेरा ज़रूर हो ।

लेखन प्रयासरत – अभिनव

poemकवितामित्र पर कविता