“नाज़” – कविता

हुजूर ज़रा बचना ये इश्क़ बीमारी लाइलाज़ है

टूटा हुआ शख़्स लिखता है ये उसका अंदाज़ है !!

लब़ों पर रहती होगी मुस्कान हमेशा दिखावे की

कभी गौर से सुनना उनकी दर्द भरी आवाज़ है !!


टल जाती है दुआ और दवा बेअसर इस मर्ज़ की

इश्क़ में मिले दर्द का दर्द ही एकलौता इलाज़ है !! 

गज़ल कभी सुनना टूटे दिल वालों की जुबान से 

उनका दर्द ही हर शब्द और दर्द ही हर साज़ है !!


शायर लिखतें रहतें है कफ़स तक दर्द पन्नों पर 

मैं भी हूँ शामिल शायरों में इसका मुझे नाज़ है !!

कविता