हम दिहाड़ी मजदूर कहाते
कर श्रम घर का बोझ उठाते हैं जब रोज कमाते तब खाते बेबस लाचारी में ही जीवन गवांते ना खुद पढ़े खूब ना बच्चे पढ़ा पाते हम दिहाड़ी मजदूर कहाते ना सपने आंखों पर अपने सज पाते बन आंसू पलकों से वो गिर जाते लक्ष्मी सरस्वती भी हमसे नजर चुराते मना मंदिरों से उन्हें ना […]