ढोंगी ‘ईश्वर’ के पाखंडी भक्त हैं ‘हम’
‘धर्म हमारे मस्तिष्क में ठोके गये एक किल (खूँटा) के माफिक है, जिसने हमारे सोचने,समझने, सवाल पूछने एवं तर्क करने कि क्षमता को अपने में बाँध लेने का काम किया है । इंसान का विचारशील होना तभी सम्भव है, जब उसका मस्तिष्क स्वतंत्र विचरण कि अवस्था में हो । जबकि हमारे धर्म में संदेह करने, सवाल पूछने और प्रमाण माँगने कि गुंजाइश ही नही है । यहाँ सिर्फ हर बात को आँख मूंदकर मान लेने और हाथ जोड़कर स्वीकार कर लेने कि ही गुंजाइश प्राप्त है ।