रोजगार की चाहत – कविता मनोज कुमार – हनुमानगढ़

रोजगार की चाहत


खाली कंधो पर थोड़ा सा भार चाहिए।
बेरोजगार हूँ साहब रोजगार चाहिए।
जेब में पैसे नहीं डिग्री लिए फिरता हूँ।
दिनोंदिन अपनी नजरों में गिरता हूँ।
कामयाबी के घर में खुलें किवाड़ चाहिए।
बेरोजगार हूँ साहब मुझे रोजगार चाहिए।
प्रतिभा की कमी नहीं है भारत की सड़को पर।
दुनिया बदल देंगे भरोसा करो इन लड़को पर
लिखते-लिखते मेरी कलम तक घिस गई
नौकरी कैसे मिले जब नौकरी ही बिक गई
नौकरी प्रक्रिया में अब सुधार चाहिए।
बेरोजगार हूँ साहब मुझे रोजगार चाहिए।।

दिन रात एक करके मेहनत बहुत करता हूँ
सुखी रोटी खाकर ही चैन से पेट भरता हूँ
भ्रष्टाचार से लोग खूब नौकरी पा रहे हैं
रिश्वत की कमाई खूब मजे में खा रहे हैं
नौकरी पाने के लिए राजस्थान में जुगाड़ चाहिए
नेता साहब बेरोजगार हूं मुझे रोजगार चाहिए।।

कविता