शायर की कलम

शायर की कलम

हकीकत निकलती है मेरी कलम से
सियासत के आगे भी ये झुक नहीं सकती !
लाइसेंसी बंदूके छीन ली जाती है यहाँ
मगर ग़ैर लाइसेंसी कलमें रूक नहीं सकती !!

ए-हुक्मरानों कैद करलो चाहे इस शायर को
मग़र हकीकत छिप नहीं सकती शायरी में !
हर शब्द में सच और हर पन्ने में सच्चाई ,
ढूंढ़ने पर भी झूठ नहीं मिलेगा मेरी डायरी में !!

मैने एक शख़्स से मोहब्बत कर ली थी कभी
अब मौत का डर दिखाकर क्या डराता है तू !
मैं उनके बारे में लिखता रहता हूँ अक्सर
जिन्हे जाति-धर्म के नाम पर मराता है तू !!

भूल है तुम्हारी आज का नया शायर हूँ
मैनें कलम से रिश्ता जोड़ लिया था बचपन में !
क्या सोचते हो रूक जाऊंगा मैं बुढ़ापे में
ये कलम तो सच ही लिखती रहेगी पच्चपन में !!


✍️ “मिर्ज़या साहवा”