बस अभी अभी तो

बस अभी अभी तो….

अभी सूरज ढला
अभी चांद आ गया
रात आंखों में थी
मैं बोतल में आ गया

अभी थे तारे खिले
अभी प्रभात आ गया
अभी बस आंख खुली कि
जुवां पे उसका नाम आ गया

  • शुभम शर्मा ‘शंख्यधार’
कविता