किंकर्तव्यविमूढ़ – कविता- ईश शाह

जब मैं कुछ नहीं करता हूँ
तब मुझे दोषी करार दिया जाता है।
जब कुछ करूँ तो फिर मेरा क्या हश्र होगा?
मैं डरता हूँ नजरों के अंधियारो से
डरता हूँ शब्दों की तलवारो से
सहमा हूँ रिश्तों के बटवारे में
पला हूँ आँसुओ की आँखों में
चार आँखे वाले मेरे जीवन के सफर को क्या जानेंगे ?
मै तो खुद कभी -कभी अपने सफर के रास्तों को भूल जाया करता हूँ।
अपनी इसी नाकामी को आपसे जाया करता हूँ।
शायद मेरे पास नकाब एक ही है,
इसलिए लोगो को पसंद नहीं आया करता हूँ ।
पर मैं एक पेड़ हूँ जो फल आपके लिये लगाता हूँ, फिर भी बन्द दरवाजे देख पाता हूँ ।
पदो की लालच में मुझे इस्तमाल किया गया ,
उन्होँने खुद अपना वक्त बर्बाद किया,
मेरे लेखन को ओदारने से विचार नहीं बदलेंगे
और उत्तेजित हो जाएंगे
क्या लिखूं अपने जीवन के सन्दर्भ में , उम्र बित जाएगी
इसलिए मैं निर्दोष -निर्भय -निराश्रय रहना चाहता हूँ ,
सभी दुश्मनों को मित्र बनाना चाहता हूँ।

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