बेमतलबी बचपन

बेमतलबी बचपन बातें थी,बेमतलब, बेख़ौफ़बेवजह, बकवास। बचपन था,बेसब्र, अल्हड़हैरान-परेशान, मासूम। दोस्ती थी,सुकून, शरारतीबगावती, मनमौजी। सोचती हूं, आज बचा है क्या हैबस, छुटपन की कुछ यादेंआम का पेड़, कैरीगपशप वाला टूटा-जर्जर अड्डा,और भीड़ में गुम,इधर मैं, उधर तुम।

मैं…ख्वाब…और जाम !

मैं…ख्वाब…और जाम ! चाहत की है बात नहींमैंने सब यूं ही छोड़ दियाकैसे तेरे पास रुकूंवेवजह कुछ करना छोड़ दिया जब जब मैं जाता राह अटकमैंने चांद निहारा सुबह तलकसब ख्वाब हैं मेरे चुभन भरेये जानके सबको तोड़ दिया टूटे ख्वाबों को मज़ार बनाहर रोज निहारा करता हूंअपने जख्मों के रंगों काहिसाब लगाया करता हूं […]

मेरा कीमती उपहार

मेरा कीमती उपहार …. हाय ये कैसा भौतिकवादी युग !भोग, लालसा, धन की बस भूख,क्या चाहिए, कुछ पता नहीं,सबकुछ सम्मुख, फ़िर भी दुख । केवल दिखावे की है होड़,दौड़, दौड़, बस अंधी दौड़,रिश्ते ताक रहें हैं मुँह,अपने दिए अब पीछे छोड़ । कुछ ओर ही चाहे मेरा मन,ना वैर द्वेष, ना दोगलापन,धैर्य, विवेक कीमती उपहार,सब्र, […]

अजय कीर्ति छद्म रचनाएँ – 6

अल्फ़ाज़ तो महज़ एक हवा का झोंका हैहमने तो बेवक्त भी जग को बदलते देखा है अजय कीर्ति ये जो ठंडी-सर्द हवाओं की रातें है इन्हें गुज़र तो जाने दे |फिर पता चलेगा तुम्हे ,मेरी मौहाब्बत की कीमत क्या है || अजय कीर्ति निकली हैं आँखे किसी को ढूंढने,लगता है कोई कहीं खो सा गया […]

कर्मठ बनो

कर्मठ बनो भूलना भूल जाओ सूली पर झूल जाओ,दिन देखो ना रात अभी आंखों में तुम खून लाओ,हरा भरा होगा सब जीवन बीज तुम्हारे अंदर है,चेहरा और चमन चमकेगा एक बार बस खिल जाओ। संघर्ष करो दृणता लाओ अपना घर आंगन महकाओ,जैसे रस्सी काटे पत्थर ऐसे कर्मठ बन जाओ,वक्त के दरिया पे तुम पत्ते जैसे […]

अभिनव कुमार – छद्म रचनाएँ – 6

ख़ुद को खुदा, तुझको जुदा है माना मैंने,सच कहूँ – ख़ुद को बिल्कुल भी ना जाना मैंने !एक अरसे बाद आज मेरी आँख खुली,केवल ठुकराया बस, ना सीखा अपनाना मैंने । ✍🏻 अभिनव कुमार मान ही गए हम तुम्हें जनाब,मंसूबों को अपने दिया अंजाम,ढूंढ ही ली मुझमें लाखों कमियां,हम सोच रहे थे करोड़ों तादाद । […]

कन्यादान में दान के मायने

कन्यादान में दान के मायने मूर्खता का शिक्षा के साथ कोई संबंध नहीं है। कोई बहुत शिक्षित होकर भी मूर्ख हो सकता है। स्वयं को प्रगतिशील और आधुनिक दिखाने की होड़ में भी कुछ लोग मूर्खताएँ करते हैं। एक IAS अधिकारी हैं, जिनकी मीडिया में बड़ी वाहवाही हो रही है कि उन्होंने अपने विवाह में […]

अभिनव कुमार – छद्म रचनाएँ – 5

मुझे ज़िन्दगी तुझसे शिकायतें बहुत हैं,तुझे दी मैंने हरपल हिदायतें भी बहुत हैं,आज निकला जब मैं सड़क पर,तब जाना कि तेरी मुझ पर इनायतें बहुत हैं । अभिनव कुमार तुमने बनानी चाही हमसे,हम बना ना पाए,,ग़ैरों की तो बात दूर,मेरे पास ना साए । अभिनव कुमार तू हमारी फिक्र छोड़,ख़ुद को तो पहले ठीक कर,बड़ा […]

लॉन्ग डिस्टेंस वाली सोहबत

लॉन्ग डिस्टेंस वाली सोहबत आजकल‌ एक अलग इश्क़ जी रही हूंलौंग डिस्टेंस में रहकर नजदिकियों वालीं कविताएं लिख रहीं हूं।अच्छा, ये भौगोलिक दूरियों वाली सोहबत क्लिशे सी लगे शायदपर क्या खाएं, कहां गए, किस से मिले..से आगे की बातें भी बुन रही हूं। ठहरों, और भी बातें होती हैं हमारीविडियो-आडियो कॉल लाग्स साखी हैं सारी,जैसे […]

हमारी वो मासूम मां

हमारी वो मासूम मां, जिनके पास ऐसी मासूम मां हैं जिनका …… न कोई सोशल मीडिया पर अकाउंट हैं, न फोटो , सेल्फी का कोई शौक है, उन्हें ये भी नहीं पता की स्मार्टफोन का लॉक कैसे खुलता है, जिनको ना अपनी जन्मतिथि का पता है, उन्होंने बहुत कम सुख-सुविधाओं में अपना पूरा जीवन बिताया, […]

रोजगार की चाहत – कविता मनोज कुमार – हनुमानगढ़

रोजगार की चाहत खाली कंधो पर थोड़ा सा भार चाहिए।बेरोजगार हूँ साहब रोजगार चाहिए।जेब में पैसे नहीं डिग्री लिए फिरता हूँ।दिनोंदिन अपनी नजरों में गिरता हूँ।कामयाबी के घर में खुलें किवाड़ चाहिए।बेरोजगार हूँ साहब मुझे रोजगार चाहिए।प्रतिभा की कमी नहीं है भारत की सड़को पर।दुनिया बदल देंगे भरोसा करो इन लड़को परलिखते-लिखते मेरी कलम तक […]

मनोज कुमार – छद्म रचनाएँ

कभी साथ बैठो तो पता चले की क्या हालात है मेरेअब तुम दूर से पूछोगे तो सब बढ़िया हालात है मेरेमुझे घमंड था की चाहने वाले दुनिया में बहुत है मेरेजब बात का पता चला तो उतरगये नखरें तेवर सब मेरे।। मनोज कुमार, नोहर (हनुमानगढ़) होठों पर मुस्कान,दिल मे लेकर अनुमान ।मंजिल मिलेगी रे,चलोगे यार […]

आसान है क्या …

आसान है क्या … आसान है क्या ?सोचो तो सब कुछ !सोचो तो कुछ भी नहीं ! चिंतन पर,सबकुछ ही निर्भर,क्या सरल, क्या है विकट ! मन:स्थिति,लिखती है विधि,बनाए बिगाड़े हर घड़ी । श्वास लेना,आसान है क्या ?कोशिश कर, सब कुछ होगा । आत्मबोध – अभिनव कुमार

अजय कीर्ति छद्म रचनाएँ – 5

हर सुबह का धूआं कोहरा नहीं होता है ।हर रात का चन्द्रमा काला नही होता है ।।बीत जाते हैं ज़िन्दगी के हसीन पल भी ।हर दिन नए साल का सवेरा नहीं होता ।। अजय कीर्ति नोहर, हनुमानगढ़ दिल की धड़कनें ,रातों की नींद,मेरा चैन ले गई ।इक खुबसूरत कली मुझे अपनी किताब दे गई ।। […]

मिलन को रास रचाता हों

नज़रों की सीमा से मीलों उपरकोई गीत मिलन के गाता हों। जहां सूरज बातें करता होंबिखरी रोशनी समेटता हों। धरती भी अलसाती होंबादल ओढ़ लजाती हों। चांद बीच आ जाता होंजलन में मुंह बिचकाता हों। शाम ढले सब प्रीत लिएमिलन को रास रचाता हों।।

शुभम शर्मा ‘शंख्यधार’ – छद्म रचनाएँ

मैं आसमां और तू जमीं (शायरी) बड़ी लंबी नहीं है डोर जो है तेरी मेरीमैं आसमां तेरा तू है जमीं मेरीजब जब महसूस करता हूं करीब से खुद कोतेरी खुशबू से महकती है हर सांस ये मेरी। शुभम शर्मा ‘शंख्यधार’ तुम मेरा आईनाहर धड़कन धड़कती है तुमसे,हम जान बना बैठे हैं तुम्हें,आंखों में तुम्हें समाना […]

हम – कविता

हम चाय के शौकीन हमधुन में अपनी लीन हमजब लगेगी अपनी किस्मतहोंगे तब रंगीन हम छा रहा है बादलों काहल्का सा पहरा यहांहो चला सबकुछ धुआं साअब है आती नींद कम।

सीता माता को ना छूना रावण की “महानता” नहीं मज़बूरी थी |

सीता माता को ना छूना रावण की “महानता” नहीं मज़बूरी थी | हर साल हम दशहरा पर रावण के “महान” होने की गाथा सुनते है | और सोशल मीडिया पर तो रावण के “संस्कारो” की तारीफ करते लोग नहीं थकते | इसमें सबसे बड़ी बात बोली जाती है की रावण ने सीता माता का अपहरण […]

दहलीज़ – कविता – शिल्पी प्रसाद

कुछ किताबें उन मांओं पर लिखी जानी चाहिए,जिनके दिन चुल्हें के धुएं की धुंध बनकर रह गए।एक पन्ना भी मन का न नसीब आया जिनके।। एक-आधा गीत उनके द्वंद्व की भी गढ़ी जानी चाहिए,महिमा मय नहीं, खांस-खांस खाट पर निढाल हुई जो पट गई।दम निकलते वक्त अकेले पड़ी कोठरी में दो टूक शब्द तक नहीं […]

अभिनव कुमार छद्म रचनाएँ – पर्यावरण

जीव जन्तु,जैसे शिव शंभू,बचाते पर्यावरण,ना किन्तु परन्तु । अभिनव कुमार दो हाथ जब मिल जाएं,पशु, पेड़ फ़िर खिलखिलाएं,वातावरण जीवित हो जाए,आओ धरा बचाएं । अभिनव कुमार गागर में साग़र,सबकुछ ही उजागर,इन्सां, पेड़-पौधे, जानवर,मिलकर बनाएं जीवंत पर्यावरण,आमीन ! अभिनव कुमार वन्य जीव,जैवमंडल की नींव,गर हों जो विलुप्त,संतुलन हो क्षीण । अभिनव कुमार