वो नाराज़ हैं!

वो नाराज़ हैं!

मैंने खुद ही खुदको तोड़कर
अपने रास्ते में कांटे बिछाए हैं,
मुझे गिला नहीं है गैरों से
मैंने खुदही खुदसे धोखे खाए हैं।

वो देखते हैं तिरछी नजर से मुझे इसमें मेरा क्या कसूर,
शायद उन्होंने ऐसे ही हमसे मिलने के गुर अपनाए हैं।

अभी लम्हा नहीं गुजरा जब था खुशी से मैं
लगता है हमने ही उनके दिल में कांटे चुभाए हैं,
वो ऐब रखते हैं हर परिंदा पकड़ने का
शायद हमने ही अपने तोते उड़ाए हैं।

पहली बार थे हौले से मुस्काए वो,
दूसरी बार जोर से खिलखिलाए वो
फिर जब आंख मेरी आंख से मिली
तब जोर से गुर्राए वो।

शायद गलती हमने ही की होगी कोई
जो वो इतना गिला लिए बैठे थे,
हमें देर से समझ आई रिश्तों की कश्मकश
शायद वो इसीलिए बड़े ऐब से ऐंठे थे।

poemकविताकविता दिल से