कविता

वो नाराज़ हैं!

वो नाराज़ हैं!

मैंने खुद ही खुदको तोड़कर
अपने रास्ते में कांटे बिछाए हैं,
मुझे गिला नहीं है गैरों से
मैंने खुदही खुदसे धोखे खाए हैं।

वो देखते हैं तिरछी नजर से मुझे इसमें मेरा क्या कसूर,
शायद उन्होंने ऐसे ही हमसे मिलने के गुर अपनाए हैं।

अभी लम्हा नहीं गुजरा जब था खुशी से मैं
लगता है हमने ही उनके दिल में कांटे चुभाए हैं,
वो ऐब रखते हैं हर परिंदा पकड़ने का
शायद हमने ही अपने तोते उड़ाए हैं।

पहली बार थे हौले से मुस्काए वो,
दूसरी बार जोर से खिलखिलाए वो
फिर जब आंख मेरी आंख से मिली
तब जोर से गुर्राए वो।

शायद गलती हमने ही की होगी कोई
जो वो इतना गिला लिए बैठे थे,
हमें देर से समझ आई रिश्तों की कश्मकश
शायद वो इसीलिए बड़े ऐब से ऐंठे थे।

©शुभम शर्मा 'शंख्यधार' शुभम शर्मा का जन्म जिला शाहजहांपुर यू ०प्र० के एक छोटे से कस्बे खुटार में हुआ। ये उन स्वतंत्र लेखकों में से हैं जो सिर्फ अपने मनोरंजन के लिए तथा अपने खाली समय में अपने अंदर झांककर उसका सदुपयोग करने के लिए लेखन करते हैं। आप…

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