G20 – तारीफ़ तो बनती है

नमस्कार🙏🏻G20 दिल्ली शिखर सम्मेलन 2023 की सफ़लता अब जग ज़ाहिर है और इसे किसी साक्ष्य की आवश्यकता नहीं है ।इसकी अपार लोकप्रियता से प्रेरित होकर मैंने एक स्वरचित कविता लिखने का प्रयास किया है ।यदि संभव तो कुछ पल के लिए इस पर आपका ध्यान चाहूंगा ।कविता थोड़ी लम्बी ज़रूर है, मगर दिलचस्प प्रतीत होती […]

मेरा गीत

मेरा गीत तुमसे शुरु है तुम पर खतमनिसार कर दु मैं ये जनम कल ही मिली थी तुम राह मेंरात भर न सोये तुम्हारी चाह मेंखयालो से मेरे जाती नहीं ….तुम मेरी बातो में आती नहीं ….. ना तुम करो मुझ पे इतने सितमनिसार कर दु मैं ये जनम तुमसे शुरु है तुम पर खतमनिसार […]

राजा मौन खड़ा हो जाए

राजा मौन खड़ा हो जाए राजा मौन खड़ा हो जाएवर्तमान को भूत बताएजनता फिर से बनती जाएराजा मौन खड़ा हो जाएमाया से आंकड़ा छुपाएजाति को ही कर्म बताएराजा मौन खड़ा हो जाएधर्म हीन हो धर्म सिखाएरच कथा वो डर दिखाएराजा मौन खड़ा हो जाएसच्चा हो कर झूठ बताएभक्षक बन लंगर सजाएराजा मौन खड़ा हो जाएसपनों […]

आऊंगा जरूर – अज़य कीर्ति

तुम्हे मिलने मै आऊंगा जरूरकभी राम बनकरकभी कृष्ण बनकरकभी सीता बनकरकभी राधा बनकरकभी पति बनकरकभी पत्नी बनकरकभी पुत्र बनकरकभी पुत्री बनकरमैं तुम्हे याद आऊंगा जरूरकभी कलम बनकरकभी किताब बनकरकभी ख्वाब बनकरकभी नींद बनकरकभी सपना बनकरमैं तुम्हे देखने आऊंगा जरूरकभी रात बनकरकभी दिन बनकरकभी सितारे बनकरतो कभी चाँद बनकरकभी छाँव बनकरतो कभी धूप बनकरआऊंगा जरूर आऊंगा […]

अज़य कीर्ति छद्म रचनाएँ – 15

सत् का वरण जरूरी हैकल न हो,किसी सीता का हरणकल न जन्मे कोई रावणबुराई का मरण जरूरी है अज़य कीर्ति तितलियों को फूलों से इश्क करते देखा हैचंचल मन को आसमां पर उङते देखा हैराह सही,पक्की हो तो मंजिल मिल जाती हैगलत राहों पर जाने वालों को भटकते देखा है अज़य कीर्ति कही गिरा हो […]

कविता- प्रण हमारा – अज़य कीर्ति

बारिशों के मौसम में वो ,जा बैठे कहींवो हमे छोङ कर ,दिल लगा बैठे कहीं सपनों का ये संसार क्या,गँवा बैठे कहींइस प्यार से प्यार को,भूला बैठे तो नहीं हर तरफ ये शोर है,प्यार का ये है समांफिर बांधने वाले क्यों यूं, जा बैठे कही बातें सुन महक उठता था,ये मन हमाराआहटें सून जाग जाता […]

अब सूरज से मिलने जाना है ☀️ – चंद्रयान – अभिनव कुमार

चंद्रयान तीन,नहीं होए यकीन,अद्भभुत उपलब्धि,एक रात और दिन ! फतह लक्ष्य महान,फूंक डाली जान,भारत ने पाया,सर्वोच्च स्थान । छुआ दक्षिणी ध्रुव,थी कबसे भूख,खुश चंदा मामा,आए अपने खुद । विक्रम, प्रज्ञान,ख़ुद थे हैरान,मामा हुए व्याकुल,नहीं ज्ञात अंजान । किए चरण स्पर्श,लगे गले सहर्ष,मामा नाराज़,बोले “इतने वर्ष” ! “अरे बरखुरदार,इतना इंतज़ार !जाओ मैं नहीं करता,तुमसे कोई बात […]

अभिनव कुमार – छद्म रचनाएँ – 10

बढ़े से भी खाता हूं,छोटे से भी खाता हूं,गालियां खाने की आदत है,अपना धर्म निभाता हूं । अभिनव कुमार बाहर से कुछ,अंदर से कुछ,ऐसा क्या मैं,हूं सचमुच ? अभिनव कुमार जो मिला,उसे नहीं गिना,जो नहीं मिला,बस उसका गिला । अभिनव कुमार चंद्रयान तीन,नहीं होए यकीन,अद्भभुत उपलब्धि,बगलें झांके चीन ! अभिनव कुमार हज़ारों बार गर कक्षा […]

मित्र तो ज़रूर हों

मित्र तो ज़रूर हों बेशक चाहे कम हों,पर मित्र तो ज़रूर हों ।समझने का दम हो,चाहे कोसों दूर हों । हमराज़ हों, हमदम हों,और विश्वास भरपूर हो ।आंखें जब नम हों,वे पर बेकुसूर हों । धरती हो या नभ हो,उनसे ही बस नूर हो ।वे जैसे मरहम हों,छूते ही पीड़ा दूर हो । चाहे कोई […]

सच्ची आज़ादी

आज़ादी एक अभिव्यक्ति है,जिसे महसूस कर सकती सिर्फ़ देशभक्ति है,आज़ादी एक अहसास है,जिसपर हर हिंदुस्तानी को नाज़ है । इसकी अनुभूति हर किसी के बस की बात नहीं,इसको मनाना केवल एक दिन और एक रात नहीं ।ये हर दिन, हर पल, हर लम्हा सीने में चलती है,तब जाकर उस देश की छठा निखरती है । […]

अज़य कीर्ति छद्म रचनाएँ – 14

कितने साल गुज़र गए तेरी गलियों में आते-जाते पता ही नहीं चला, ना तू मिल सकी ना तेरा निशां || अज़य कीर्ति कुछ तो हुआ है मेरी इन झुकी आँखों कोकमबख्त तुम्हारे चेहरे से हटती ही नही हैं || अजय कीर्ति अज़य कीर्ति अपनी आँखों को देखना है दूसरों की आँखों से देखना,साहब!सूना हैं ये […]

अभिनव कुमार – छद्म रचनाएँ – 9

थक गया हूं लड़ – लड़कर हालातों से,दुआ करो कि अब ये आघात आखिरी हो। आँखें हैं कि इंतज़ार में तेरे बहे जा रही हैं,खुदा करे कि बरसात ये अब आखिरी हो । दिल कहे जा रहा है पर मन है कि समझता ही नहीं,यदि ऐसा है तो अब ये जज़्बात काश आखिरी हों । […]

अजय कीर्ति छद्म रचनाएँ – 13

कितने खुबसूरत लब्ज़ है तुम्हारे,कभी जी कभी यार कहती हो |सुना है ये प्यार-व्यार का चक्कर यहीं से शुरू होता है || अज़य कीर्ति तुम याद तो बहोत आओगे हमें,पर याद कर नहीं सकूंगाअभी मै नौकरी के चक्कर में किताबों से, इश्क कर बैठा हूँ| अज़य कीर्ति दिल तुम्हारा हो या हमारा ,धङकता तो इक-दूजे […]

अजय कीर्ति छद्म रचनाएँ – 12

जब से तुमने रात में जागना शुरू कियातेरी कसम ! चांद भी तेरा दिदार करने लगा है || अज़य कीर्ति किताबों को भावनात्मक व ज्ञानात्मक रूप से पढने पर मनुष्य में दया,सेवा,परोपकार,अहिंसा,सत्य आदि ऐसे गुणों का विकास होता है जो जीव को स्वर्ग की ओर ले जाते हैं | अज़य कीर्ति ज़िन्दग़ी की तलाश अभी […]

ये हाड़-मांस की कैसी भूख

ये हाड़-मांस की कैसी भूख ये हाड़-मांस की कैसी भूख !मृग-तृष्णा ये, दूर का सुख,मत कर इसका व्यसन तू प्यारे,कुत्ते की मत बन तू दुम । इंद्रियों को तू वश में कर,लिप्सा में बिल्कुल मत फंस,दलदल है ये बेहद गहरा,जाएगा तू अंदर धंस । बाहर आना फ़िर नामुंकिन,वासना का तू बनेगा जिन्न,मन की बस पूजा […]

दीदार ए इश्क

दिल पहली बार था धड़कामैं देख के उसको भड़कादेखा था उसको शादी मेंवो लगे नहाई चांदी में पहले प्यार का था पहला नशादेख के मुझको वो था हॅंसावो काली साड़ी में इतराएमेरा ब्लड प्रेशर बस बढ़ता जाए दो नैना थे मतवालेऔर पैरों में झंकारेंसब उसके हुए दीवानेमैं भी था वहीं किनारे वो हरदम ही मुस्काएमेरे […]

अजय कीर्ति छद्म रचनाएँ – 11

तेरी ज़िन्दगी का हर मोङ सुकुन से भरा होगा |मै नहीं तो कोई और तो तुझ पर मरा होगा | अज़य कीर्ति ग़फ़लत मे बिता दी उम्र सारी, उसकी तरहा ज़िन्दगी भी बेवफा निकली | अज़य कीर्ति ज़िन्दग़ी की तलाश अभी बाकी है,हसरतों का जवान होना बाकी है |होने को तो सब कुछ है हमारे […]

अभिनव कुमार – छद्म रचनाएँ – 8

मनोरोगी,मैं हूं ढोंगी,और हूं वाहियात,मैं केवल भोगी । अभिनव कुमार सारी कमियां मेरे नाम,मुझपर ही सारे इल्ज़ाम,थोड़ा ख़ुद को देख तू प्यारे,नंगों से भरा पड़ा इमाम। अभिनव कुमार मैं बिल्कुल ही अकेला हूं,छिलका बिन कोई केला हूं,बाहर वालों की बात तो छोड़ो,घर वालों के लिए झमेला हूं । अभिनव कुमार इस बार नहीं झुकूंगा मैं,पूरा […]

अजय कीर्ति छद्म रचनाएँ – 10

नज़र उठाकर देखा जिसे,वो हुस्न वाले बङे महफ़ूज़ निकले |क्या सुनें उनकी अदाओं की गुस्ताख़ियां,वो ख़ुद बेजूबां निकले ||अरे! लूट गई सबकी कस्तियां,वो दर्दे-मोहब्बत के शायर निकले |सोचा उनकी शायरी से तर जाऊं,पर ख़ुद मझधार में डूबे निकले || अज़य कीर्ति प्यार तो ऐतबार का होता है साहबपरदे के पीछे बहोत धोखेबाज रहते है | […]

अजय कीर्ति छद्म रचनाएँ – 9

लगी है दिल की तुमसे ,मैं तुम्हे ये बात कैसे बताऊं |कभी याद,कभी ख्वाब सब आते हैं पर तुम्हे कैसे दिखाऊं || अज़य कीर्ति आज मैं बहुत उदास हूँ,लगता है जैसे शरीर से निकल रहे हैं|आना_जाना तो रीत है दुनिया की,लगता आज कोई खा़श चला गया है || अज़य कीर्ति वो बहोत हंसती थी,हंसाती थी,रोज […]