सत्ता रुपी पशु की अन्तरात्मा नहीं होती
कहा जाता हैे कि सत्ता, सता- सता कर मिलती है। इसीलिये जब यह मिलती हेै तो इसे भोगने वाले निरंकु’ा या यूॅ कहें कि, मदान्ध हो जाते है। एसा हमे’ाा ही होता है। बस फर्क इतना हैे कि, सत्ता को भोगने वाले चेहरे बदल जाते हेैं। इसका गरुर इतना अधिक होता हैे कि, जब तक यह रहती है तब तक रास्ते सीधे नजर नहीं आते हैं। इसका एक अवगुण यह भी होता हैे कि, यदि उसके विरुद्ध कोई आवाज उठाने की को’िा’ा करता हैे तो वेा सत्ता विरोधी करार दे दिया जाता हेै ओैर उसे येन केन प्रकारेण ‘‘ निबटाने’’ का खेल खेला जाता हेै। टीम अन्ना और बाबा रामदेव इसके दो प्रमुख उदाहरण है।