लेखख़ास

भारत में पत्रकारिता का गिरता स्तर

यह बात बिलकुल सत्य है कि एक पत्रकार और उसकी पत्रकारिता अपनी कठिन मेहनत से समाज में घटित हो रही घटना से हमें रूबरू करवाते है. माध्यम बेशक टलीविजन पर दिखाई जाने वाली खबरें हो या आपके हाथों में आने वाला रोज का अखबार और आज तो हमें ज्यादातर विश्वास इंटरनेट पर चलने वाली ख़बरों की apps पर है क्योंकि जैसे ही कोई घटना घटित हुई और आपके मोबाइल पर वो खबर हाज़िर. लेकिन ये सभी खबरें आपके लिए कितनी आवश्यक है या फिर कितनी सत्य है इसका जवाब आपको खुद से ही सोचना पड़ता है.

पत्रकारिता के कारण ही आज हमारे देश को आज़ादी नसीब हुई, आम मानस के बीच स्वतंत्रता की आग को पहुंचाने का काम इसी से संभव हो पाया. पर आज आप कोई भी साधन उठा ले (रेडियो, टी.वी से लेकर इंटरनेट तक ) आप खुद भांप सकेंगे की अब ये खबरें सच्चाई कम मसालों से अधिक भरी है. मुददा देश की सुरक्षा से लेकर देश की अर्थव्यवस्था या फिर किसी प्राकृतिक आपदा से जुड़ा हो लेकिन आपको वो किस प्रकार परोसा जा रहा यह यक़ीनन चिंता का विषय है.

आप पाएंगे की ख़बरों को तोड़ मरोड़ कर और दर्शको के हिसाब से प्रस्तुत किया जा रहा है . ख़बरों में संगीनता कम हंसी मजाक और मनोरंजन अधिक होगा. ऐसा क्यों हैं? ये जान पाना बेहद ही आसान है – पहली बात ज़माना प्रतिस्पर्धा का है क्योंकि आज न्यूज़ चनेलों और वेबसाइट और अन्य न्यूज़ एजेंसियों की भरमार है. सभी एक दुसरे के प्रतिभागी है और ज्यादा टी-आर-पी मतलब आधिक मुनाफा. और 24×7 चलने के लिए ऐसा करना उनके लिए जरूरी है. राजनीति भी यहाँ एक महत्वपूर्ण भाग निभा रही है, ये दर्शक भी समझते है. इन न्यूज़ चैनलों के सी.ई.ओ और अन्य अफसरों के राजनितिक रिश्ते भी किसी से छुपे नहीं है. राजनितिक विज्ञापनों से लेकर धर्म गुरुओं द्वारा दिए गए सन्देशों को चलाकर ये यक़ीनन एक विशेष वर्ग को अपनी और आकर्षित करने में लगे पड़े है .

बात यहीं खत्म नहीं हो जाती है पत्रकारिता के नाम पर किसी आतंकवादी से लाइव इंटरव्यू को लेकर सुर्खियाँ बटोरने से लेकर ऐसे वीडियो का प्रसारण जिनसे देश के एकता को खतरा पहुँच सकता है वो भी लोगों को परोसा जा रहा है. किसी रेप शिकार महिला की सारी निजी जानकारी और उसका चेहरा दिखाकर भी प्रसिद्धी पाना भारत जैसे देश में मुमकिन हो रहा है. जब इनमें से कुछ भी ना मिले तो सब की पहली पसंद होती है बॉलीवुड और उस से जुड़े लोगों की मसालेदार खबरें जिनका आप तक पहुंचना बहुत जरूरी है क्योंकि शायद किसी प्रतियोगी परीक्षा में उस से संभंधित किसी सवाल के जवाब देने से आप चूक ना जाएं.

यह कहना गलत होगा की सभी पत्रकार और उनकी पत्रकारिता एक सामान है क्योंकि कुछ लोग सीधे और साफ़ शब्दों में अपना काम करते है. दर्शकों को भी समझ लेना चाहिए कि पत्रकारिता सिर्फ आपके मनोरंजन के लिए नहीं होनी चाहिए क्योंकि कुछ मुद्दें है जो आपके और आपके देश के लिए आवश्यक है. और पत्रकारों को भी ये समझ लेना चाहिए कि ऐसी पत्रकारिता समाज पर कैसा प्रभाव डाल रही है और इसमें परिवर्तन लाने की आवश्यकता है .

संजीव कुमार, हरियाणा के एक छोटे से जिले कैथल का रहने वाला और डिग्री से एक सिविल इंजिनियर. हिंदी से जुड़ाव दसवीं तक ही रहा लेकिन कॉलेज के बाद इसे मैंने अपनी जेब-खर्ची का साधन बना लिया. हिंदी से शायद कभी जुड़ाव खत्म ही नहीं हुआ इसीलिए मुझे ये पसंद है और इसे…

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