अज़य महिया छद्म रचनाएँ – 17
जब तू आएगी फिर से मेरे दिल-ए-द्वार पर,कसम से दरवाज़े बंद मिलेंगे अज़य महिया खुबसूरती किसी!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…
जब तू आएगी फिर से मेरे दिल-ए-द्वार पर,कसम से दरवाज़े बंद मिलेंगे अज़य महिया खुबसूरती किसी!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…
अग़र मै और तुम एक हो जाएं, जग की सारी खुशी मुझे मिल जाए | होंगे एक तो लहरें गाएंगी,हवा खूशी से!-->!-->!-->!-->!-->…
मुझे किताबों ने क्या सीखाया और क्या सीखा रही हैं, मैं ब्यां नहीं कर सकता,यदि जानना चाहते है तो!-->!-->…
शब-ए-घोर अंधियारे में ,आज करूणा-कंठ भरे हैंकठोर हृदय मृदुल हुआ,सब आँखों में नीर झरे हैदशा देखें!-->…
तुम्हे मिलने मै आऊंगा जरूरकभी राम बनकरकभी कृष्ण बनकरकभी सीता बनकरकभी राधा बनकरकभी पति बनकरकभी पत्नी!-->…
सत् का वरण जरूरी हैकल न हो,किसी सीता का हरणकल न जन्मे कोई रावणबुराई का मरण जरूरी है अज़य महिया !-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…
बारिशों के मौसम में वो ,जा बैठे कहींवो हमे छोङ कर ,दिल लगा बैठे कहीं सपनों का ये संसार क्या,गँवा!-->!-->!-->…
कितने साल गुज़र गए तेरी गलियों में आते-जाते पता ही नहीं चला, ना तू मिल सकी ना तेरा निशां || अज़य!-->!-->!-->…
कितने खुबसूरत लब्ज़ है तुम्हारे,कभी जी कभी यार कहती हो |सुना है ये प्यार-व्यार का चक्कर यहीं से!-->!-->!-->!-->…
जब से तुमने रात में जागना शुरू कियातेरी कसम ! चांद भी तेरा दिदार करने लगा है || अज़य महिया !-->!-->!-->!-->!-->!-->…
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