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अजय महिया छद्म रचनाएँ – 12

जब से तुमने रात में जागना शुरू किया
तेरी कसम ! चांद भी तेरा दिदार करने लगा है ||

अज़य महिया

किताबों को भावनात्मक व ज्ञानात्मक रूप से पढने पर मनुष्य में दया,सेवा,परोपकार,अहिंसा,सत्य आदि ऐसे गुणों का विकास होता है जो जीव को स्वर्ग की ओर ले जाते हैं |

अज़य महिया

ज़िन्दग़ी की तलाश अभी बाकी है,हसरतों का जवान होना बाकी है |
होने को तो सब कुछ है हमारे पास,बस एक महबूब की तलाश बाकी है ||

अज़य महिया

ग़फ़लत मे बिता दी उम्र सारी,उसकी तरहा ज़िन्दगी भी बेवफा निकली |

अज़य महिया

तेरी ज़िन्दगी का हर मोङ सुकुन से भरा होगा |
मै नहीं तो कोई और तो तुझ पर मरा होगा |

अज़य महिया

आम की रूत है जनाब,हो सकता है अब कुछ लोग मीठे बोलने लग जाएं |

अज़य महिया

उम्र का एक दौर गुज़र गया साहब किसी को याद करते-करते पर उन्हें हम याद नहीं आए |

अज़य महिया

हम ज़िन्दगी को उसकी यादों की खुशबू से ही गुज़ार लेते,कमबख़्त हवाओं से भी रूख बदल लिया 💞

अज़य महिया

ज़िन्दग़ी से कोई गीला-शिकवा नही है साहब,
बस मौत आने का वादा करके मुकर गई |

अज़य महिया

आसमां से सितारे झाँक रहे है ‘अज़य’
मेरी अट्टारी मे चांद ऊतर आया है

अज़य महिया

दिल में ज़ख्म कितने गहरे हैं ‘अज़य’ कभी झाँककर तो देखो |
ज़िन्दग़ी मे हर मौसम सुहाना नहीं होता,कभी हमसे बात करके तो देखो ||

अज़य महिया

आजकल लोग मतलब से बात करते हैं साहब, सच बोलने की हिम्मत थोङी हैं |

अज़य महिया

उसको देखकर तो चाँद भी बोलने लग जाए ‘अज़य’ |
न जाने वो आईना क्या-क्या हसीं कहानी कहता होगा ||

अज़य महिया

सख्त पहरों के बीच से गुज़र रहा हूँ मै
इस वक्त कठिन दौर से गुज़र रहा हूँ मै”

अज़य महिया

हमे पता है इश्के-जंग़ बुरी बला है अज़य |
पर शेर करने के लिए ये बला भी सर ले लूंगा ||

अज़य महिया

ज़िन्दगी मे तन्हाइयों का होना भी जरूरी था |
वरना बदलते वक्त का पता कैसे चलता ‘अज़य’ ||

अज़य महिया

मै लेखक अजय महिया मेरा जन्म 04 फरवरी 1992 को एक छोटे से गॅाव(उदासर बड़ा त नोहर. जिला हनुमानगढ़ राजस्थान) के किसान परिवार मे हुआ है मै अपने माता-पिता का नाम कविता व संगीत के माध्यम करना चाहता हूं मै अपनी अलग पहचान बनाना चाहता हूं

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