कविता

अज़य महिया छद्म रचनाएँ – 15

सत् का वरण जरूरी है
कल न हो,किसी सीता का हरण
कल न जन्मे कोई रावण
बुराई का मरण जरूरी है

अज़य महिया

तितलियों को फूलों से इश्क करते देखा है
चंचल मन को आसमां पर उङते देखा है
राह सही,पक्की हो तो मंजिल मिल जाती है
गलत राहों पर जाने वालों को भटकते देखा है

अज़य महिया

कही गिरा हो एक कतरा भी उस खून का जिसमें हिन्दुस्तान की मोहब्बत हो |
कसम से उस मिट्टी को जी भरकर पूजने का मन करता है|

अजय महिया

अज़य महिया

कितनी हसरतें,वफाएं ,ख्वाब मिटा दिए जाएंगे |
लेकिन कभी दोस्ती की कसम नहीं मिटने देंगे”||

अज़य महिया

शिक्षक बनने के लिए ‘पढना’ उतना ही जरूरी है जितना बच्चे को माँ का दूध

अज़य महिया

चला हूँ मंजिल की तरफ,राम मेरा सहारा है |
मै समाया हूँ राम में, राम! मुझ मे समाया है ||
जटाजूट बना लूं,चारों ओर दूग्ध धारा बहा दूँ |
ग़र ना हो राम,तो मैं खुद को ही मिटा दूं ||

अज़य महिया

किसी के मन से उत्तर जाना,ये मेरे ज़मीर मे थोङा ही है
राह कठिन अवश्य है,फिर भी मेरा हौसला टूटा थोङा ही है
ईर्ष्या,द्वेष,क्रोध,अहम्, ये सब मेरे शरीर में थोङा ही है
किसी दिल को दुखा जाऊं,ये मेरे संस्कार में थोङा ही है

अज़य महिया

शिक्षक वही महान् है जो विद्यार्थी की आवश्यकता और पुस्तक की उपयोगिता को समझकर बालक को सृजनशील बना दे ||

अज़य महिया

कहीं तो हमारी ये, गुमनाम-सी जिन्दगी रही होगी
हमें छोङकर,किसी के साथ तो वो शान रही होगी

अज़य महिया

बारिश ज़रा रूक-रूक कर आना
उन्हे महबूब से मिलना है |
ए-हवा ज़रा महकी-महकी सी आना
मेरे गुलशन को महकाना है ||

अज़य महिया

ये जो तेरे शहर का सफर है,यहां कुछ लिख दूं क्या |
जो दबी है दिल में इश्क की ख्वा़हिशें, तुम से कह दूं क्या |

अज़य महिया

आँखों से अश्क बह गए,पर दर्दे-दिल बयां न कर सके
खंज़र,चाकू,तीर,बरछी,कटार सब हैं उसकी ज़ुबान में
लेकिन वो हमारे प्रेम को, न घायल ,न नष्ट कर सके ||

अज़य महिया

चांद के बिना चकौर सूना,ज्यों रात बिना चाँदनी के
बहिन के बिना भाई सूना,ज्यों नदी बिना पानी के

अज़य महिया

राम के बिना दशरथ का क्या होगा
कृष्ण के बिना यशोदा का क्या होगा
गिरिपद से निकली सरिताएं पयोधि मे मिल जाएंगी
पर बहनों के बिना भाईयों का क्या होगा

अज़य महिया

सपनों में सजी रंग-रंगीली प्रेम रूपी मिठाई का
राखी-रक्षा सूत्र है,सिर्फ धागा नहीं है कलाई का

अज़य महिया

एक जलती हुई आग है इश्क,फागू का स्वाद है इश्क़ |
और कुछ भी नहीं,बस भावनाओं का स्वाद है इश्क़ ||

अज़य महिया

मंज़िल का सफर बङा सरल होता है
बस उससे भावना जुङी होनी चाहिए

अज़य महिया

चाँद-सी सूरत तेरी,सूरज-सा तेज हो तुम
मै राहों का अन्वेशी,मंजिल का मेल हो तुम

अज़य महिया

उनके दर्शन-मात्र से मेरी आँखें खिल उठी |
प्रकाशित तो मै हुआ था,पर चमक वो उठी

अज़य महिया

हमने अपने ही दिल से ही दगा कर लिया होता
ग़र उसे फलक से चांद लाने का वादा दिया होता

अच्छी,क्वालिटी की वस्तु अक्सर कम ही बिकती है
क्योंकि उसे खरीदने की कीमत बहुत होती है

अज़य महिया

मै लेखक अजय महिया मेरा जन्म 04 फरवरी 1992 को एक छोटे से गॅाव(उदासर बड़ा त नोहर. जिला हनुमानगढ़ राजस्थान) के किसान परिवार मे हुआ है मै अपने माता-पिता का नाम कविता व संगीत के माध्यम करना चाहता हूं मै अपनी अलग पहचान बनाना चाहता हूं

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