कविता

अजय महिया छद्म रचनाएँ – 13

कितने खुबसूरत लब्ज़ है तुम्हारे,कभी जी कभी यार कहती हो |
सुना है ये प्यार-व्यार का चक्कर यहीं से शुरू होता है ||

अज़य महिया

तुम याद तो बहोत आओगे हमें,पर याद कर नहीं सकूंगा
अभी मै नौकरी के चक्कर में किताबों से, इश्क कर बैठा हूँ
|

अज़य महिया

कितनी पागल हो तुम,बात को समझती ही नहीं हो |
मेरे गीतों के अल्फाजों को दिल पर लेती ही नही हो ||

अज़य महिया

दिल तुम्हारा हो या हमारा ,धङकता तो इक-दूजे के लिए ही है💞

अज़य महिया

एक मै था ,एक वो थी और थी हमारी मोहब्बत
अब ना वो है,ना हूँ मै,ना रही हमारी मोहब्बत !!

अज़य महिया

तुम आओ या नौकरी, तुम दोनों ही बङे कमाल की चीज़ हो

अज़य महिया

वो आएगी भी कैसे
हम इंतज़ार जो करते है

अज़य महिया

आशाओं की किरणों को अम्बर तक पहूंचाते हैं पापा
इक नदी को किनारे देकर समन्दर से मिलाते हैं पापा
सुबह से शाम तक भूखे रहकर हमे पालते हैं पापा

अज़य महिया

अपनों से प्यार करना सीखिए साहब, नफरत करना तो दुनिया सीखा देगी

अज़य महिया

कितनी पागल हो तुम,बात को समझती ही नहीं हो |
मेरे गीतों के अल्फाजों को दिल पर लेती ही नही हो ||

दिल तुम्हारा हो या हमारा, धङकता तो इक-दूजे के लिए ही है

कैसे तारीफ करूं तेरी इन आँखो की
मोहब्बत-ए-नशा तो दिल ने किया
है|

रात जरा-सी तू रूक जा,चंदा तू जरा-सा ठहर जा
अभी मोहब्बत मे मिलन का अहसास बाकी है !!

अज़य महिया

“ऐ चाँद तेरी चाँदनी की क्या तारीफ करूं
मैने उस नाजूक कली को अभी देखा है!!”

उसकी जुल्फ़ें कितनी हंसी थी
कभी देखा था बाल बनाते वक्त

अज़य महिया

मोहब्बत की राहों में यदि कांटे न आएं ‘अज़य’ |
तो मोहब्बत करने मे मज़ा ही क्या है || “

अज़य महिया

ज़िन्दग़ी की कठिन डग़र पर सितारों की महफिलें सज़ा दूंगा |
तुम इधर-ऊधर की क्यों पूछते हो अपनी पूछो सब बता दूंगा ||

अज़य महिया

“कितने पहरे लगते है मोहब्बते-शकूं पर’अज़य’ |
तुम चाहो तो कभी मोहब्बत करके देख लो ||”

अज़य महिया

उसकी मुस्कान इतनी कोमल है ‘अज़य’ |
कि श्मशान में मूर्दा ऊठकर बोलने लग जाए ||

अज़य महिया

“उसकी खुबसूरती के चर्चे पूरे गाँव में हैं ‘अज़य’ |
कल देखा था उसके घर के आईने को बोलते हुए ||”

अज़य महिया

मर जाऊंगा,लुट जाऊंगा या मार दिया जाऊंगा या मार आऊंगा |
कुछ भी हो पर मरते दम तक तुमको और सिर्फ तुमको ही चाहूंगा ||”

अज़य महिया

“कितनी हंसी और जवान है जवानी
जो चले न बिन, ख्वाबों की रानी “

अज़य महिया

किसको सुनाऊं अपनी दर्द-ए-दास्तां,कौन सुनेगा ये कहानी |
कितने अल्फ़ाज़ छुपाए बैठा हूँ दिल में
जब से आई है जवानी ||”

अज़य महिया

“इस पानी सोखने वाली गर्मी तुम आ जाओ ‘ग़ालिब’
तो कलेजे को ठंडक मिल जाए”

अज़य महिया

“आजकल मैं हवाओं से बातें करने लगा हूँ ‘अज़य’
कहीं ये हवा उनके घर से होकर तो नहीं आ रही है ||”

अज़य महिया

“रूख तो हमारा भी शायर बनने का है
‘अज़य’
पर हमने अभी तक मोहब्बत नहीं की “

अज़य महिया

“बदले हुए आदमी को कैसे पहचानें साहब
यहां वक्त को खुद अपनी पहचान बतानी पङती है ||”

अज़य महिया

“मैं न मरता तो कोई और मरता, कोई और न मरता तो खुदा मरता |
इस चाँद से हसीं चेहरे को देखकर कोई न कोई तो अवश्य मरता ||

अज़य महिया

“कितना तन्हा और अकेला हो गया हूँ मैं |
उसकी तस्वीर को देख-देख कर ‘अज़य’ ||”

अज़य महिया

“आज उसने कपङे-वपङे,जेवर-वेवर क्या बदले उसको देखने चाँद भी उसके
घर की छत पर आकर थम गया |”

अज़य महिया

“कपङे-वपङे,जेवर-वेवर सब खरीद लूंगा मैं |
तू मिल जाए तो लोगों का ज़मीर खरीद लूंगा मैं ||”

अज़य महिया

“उसकी एक कॉल से चेहरा खिल उठता है ‘अज़य’
वो समझते हैं कि हमारा दुःख दूर हो गया है ||”

अज़य महिया

“कितनी नादां और भोली है वो अल्फ़ाज़ को समझती ही नहीं है |
उससे क्या पता ‘अज़य’ कोई उसके इश्क़ मे रोता होता जा रहा है ||”

अज़य महिया

“खोजता रहता हूं किताबों को अलमारी से
शायद तुम्हारी कहीं वो तस्वीर मिल जाए

अज़य महिया

“उसकी यादों में सूखकर कांटा हो चुके हैं
वह समझते हैं कि कोई बीमारी हो गई है”

अज़य महिया

“उसका हंसना,रूठना,मनाना सब याद है |
कैसे भूल जाए कोई इतने हसीं चेहरे को ||”

अज़य महिया

“उसका सामने आकर यूं धीरे-से मुस्कुराना दिल को तसल्ली देता है |
कैसे बताऊं उस दिले-बहार को,ये दिल कितनी तकलीफ देता है ||”

अज़य महिया

“शाम हुई है आंखों में ,दिल में रोशनी-सी जागी है |
कहीं से तो वो निकले होंगे वरना ये आग क्यों लागी है ||”

अज़य महिया

“रास्तों पर दुश्मनों का होना भी जरूर था ‘अज़य’ |
वरना पता कैसे चलता कि हम मोहब्बत करने जा रहे है ||”

अज़य महिया

“कहीं से तो निकल कर हमारे सामने आए वो ‘अज़य’ |
हम उनका दीदार करने के लिए मुद्दतों से तरसे है ||”

अज़य महिया

“कई वर्षों बाद हमारी याद आई उनको
अब उम्र थोङी है हमारी इश्क करने की

अज़य महिया

“शाम हुई है आंखों में ,दिल में रोशनी-सी जागी है |
कहीं से तो वो निकले होंगे वरना ये आग क्यों लागी है ||”

अज़य महिया

“तुम आओ तो दिल को शुकूं और चैन मिले
वरना ये बारिश तो आती जाती रहेगी’अजय’
||

अज़य महिया

“तूम यूं बारिश बनकर आओ ‘सनम’
कि कभी फिर पतझङ ना आए ||”

अज़य महिया

“उसका आना कोई बारिश से कम थोङी है ‘अज़य’ |
बारिश धरती को और वो दिल ठंडा कर देती है || “

अज़य महिया

“बूंदा-बांदी रे टेम तू रूसा-रासी ना करया कर |
कठ ही मै गरजण लागगो तो ओळा पङ ज्या गा ||”

अज़य महिया

“हमने उसकी याद में हज़ारों ख़त लिखे
‘अज़य’
एक मुद्दत तक ख़त ही गायब हो गए |”

अज़य महिया

“उसकी लिखावट को आज भी संभाले हुए हैं हम
वरना किताबों का हमारे यहाँ क्या काम था
||

अज़य महिया

“तुम्हे क्या पता, के हम इतना क्यों पढते हैं
किताब के आखिरी पन्ने पर तुम्हारा ही नाम लिखा है |”

अज़य महिया

“किताबें तो हम इसलिए खोले रहते हैं ‘अज़य’
कि लोगों को लगे के हम पढ़ रहे हैं
हक़ीकत ये है कि
किताबों मे उसके वर्षों से लिखे ख़त छुपाए हुए हैं ||

अज़य महिया

“एक शायर मीर था,था एक गालिब |
एक शायर राहत है, है एक विश्वास,
एक मैं हूँ ‘अज़य’, है एक मेरा मनमीत ||”

अज़य महिया

“खामोशी बता रही है कि तुम्हे भी इश्क हो गया है
वरना इतने उदास और बेचैन नहीं रहते |

अज़य महिया

“दूर एक दिशा मे घनघोर घटा-सी छाई है
लगता है फिर चांद से चाँदनी बिछुङने वाली हैं”

अज़य महिया
मै लेखक अजय महिया मेरा जन्म 04 फरवरी 1992 को एक छोटे से गॅाव(उदासर बड़ा त नोहर. जिला हनुमानगढ़ राजस्थान) के किसान परिवार मे हुआ है मै अपने माता-पिता का नाम कविता व संगीत के माध्यम करना चाहता हूं मै अपनी अलग पहचान बनाना चाहता हूं

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