जीवन या कहर
जीवन या कहर
ये काली घटा कांटों का महलये जीवन है या कोई कहरटूटा है बनके पहरा यूंजैसे पी लिया हो कोई जहर
क्यों मंदम हवा है वहकी सीऔर वीरानगी भी चहेंकी सीपीतल का निकला हर वो महलजिसे सोचा स्वर्ण महल हमने
कहीं दूर से आती एक आवाज़जहां!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…
आसमान के तारे
आसमान के तारे
टिमटिमाते हैं रात भर तारे आसमान के,मन को हैं बहलाते वो सारे जहान के,जब देखता हूं मैं उन्हें यही सोचता हरदम,हैं क्यों वहां वो रातभर ऐसे ही खड़े।
देखा जो मैंने गौर से कुछ कहने वो लगे,ऐसा लगा जैसे वो हों किसी गोद में!-->!-->!-->!-->!-->…
राही – अक्षी त्रिवेदी
नूर का लुत्फ़ उठा रहा राही,कहीं उसका आदी न हो जाए,चंचल किरने कर रही सामना,कहीं वक़्त से मुलाक़ात न हों जाए।
सत्य की गंगा बहते बहते,
कहीं मन का अकस न दिखा जाए,हो रहा कड़वे सच से सामना,कही ज़हन में ज़हर न भर जाए।
चाँद को देख मन हो!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…
युद्ध हो रहा है
युद्ध हो रहा है
सूरत-ए-हाल दुनिया का ये क्या हो रहा है लौमड़ भर रहा तिजोरी और जोकर रो रहा है जंग-ए -वतन में आम आदमी पिस रहा है अहम के सिलबट्टे पर राजा सेना को घिस रहा है जो था कल तक महापंच सबका वही आज घर-घर जाकर जूते घिस रहा है किस!-->!-->!-->…
रवि – कविता -अक्षी त्रिवेदी
रवि
शब्दों से रचा हुआ खेल कभी,कहाँ किसिको समझ में आया हैं,दूर से सब देख रहा वो,पर कभी क्या समझाने आया हैं?
मन से विचलित होकर वो भी,कहीं अपनी काया काली न कर जाए,देख रहा है वो तो कलयुग,कहीं इसका दर्शक न बन जाए।
डर लग रहा बस इसी बात!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…
कलम – कविता – वंदना जैन
कलमशब्द कम पड़ जाते हैंजब प्रेम उमड़ता है ढेर साराप्रियतम तक पहुचना चाह्ती है कलम दिल के हर जज्बात छोटी-बडी बातेंबातों मे मुलाकातेमुलाकतों मे बरसती बरसातेंदिन के एकाकी लम्हे सांझ की कुम्ह्लायी उदासीरातो मे जागती आखेंसपनों मे मिलन के!-->…
भिन्न भिन्न चेहरे
भिन्न भिन्न चेहरे
अलग-अलग रंग औरअलग-अलग रूप के बहार से नहीं अंदर के ये चेहरे
कोई है डरे सहमे,कोई खिले-खिले से चेहरे माँ जैसे परेशां,पिता जैसे क्रोधितबच्चों से बेफिक्र चेहरे
संस्कारों में पले समय से!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…
प्रेम एक स्वछंद धारा
प्रेम एक स्वछंद धारा
एक प्रेम भरी दृष्टि और दो मीठे स्नेहिल बोलों से बना सम्पूर्ण भ्रह्मांड सा प्रेम कैसे समाएगा मिलन और बिछुड़न के छोटे से गांव में जहाँ खड़े रहते हैं अभिलाषाओं और अपेक्षाओं के!-->!-->!-->…
माँ – कविता – वंदना जैन
“माँ” मैं हूँ हिस्सा तुम्हारा और रहूंगी सदा छाया तुम्हारी आज दूर हूँ तुमसे पर हर पल मन में है छवि तुम्हारी अपनी मुस्कानों की तुमने सदा की मुझ पर स्नेह वर्षा स्वयं को रखा पीछे और आगे रही ढाल तुम्हारी अपना निवाला छोड़ा!-->…
तेरे शहर में आने का दिल करता है बार बार
तेरे शहर में आने का दिल करता है बार बार...मैं ढूँढता हूँ बार बार, तुझे देखने के बहाने हजार,
अब तो तुझसे मिलने को, ये निगाहे हैं बेक़रार,
तेरे बिना जिंदगी की हर तमन्ना है अधूरी,
अब तुझसे मिलकर मिटानी है ये दूरी...तेरे शहर में आने!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…
तुम्हारा संदेसा आया
(तुम्हारा संदेसा आया)
मेरे गीतों के स्वर तुमसे सजे हैं “प्रिय”दिन-रात कानों में गूँजें हैं कभी मौन ,कभी पायल पहन थिरकते हुए छम-छम बजे हैं
शब्दों ने भी क्या माला बनाई नित जुड़ कर!-->!-->!-->!-->!-->…
स्त्रियां – कविता – वन्दना जैन
स्त्रियांजलप्रपात सी बजती छन-छन उछलती मचलती सरस सी जलधार सहज ,शीतल,सफ़ेद मोतियों का कंठ हार प्रेम में मधुछन्द सी गूंजती कभी भय लिप्त हो आँखें मूंदती मानसिक उद्वेग को सागर सा समेटती स्वयं की लिखी अनबुझ पहेली सी व्यक्त होती अव्यक्त सुन्दर!-->…
काश तू कभी मिली ना होती
काश तू कभी मिली ना होती तो अच्छा होता
दोस्तों के बहकावे मे ना आया होता तो अच्छा होता!!
तुमने नजाने मुझसे क्यू बड़ाई नजदीकिया,
अगर छोड़ना ही था तो ठीक थी ये दूरियाँ!
मैंने तो कभी तुझसे प्यार ना किया,
तेरे हां कहने से मैंने!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…
फायदा ही क्या है
बे'वजह ,असमय बोलने मे तेरा फायदा ही क्या है, अपनी कमजोरियों को दिखाने से फायदा ही क्या है ।। सबको मालूम यहां स्वार्थी लोग निवास करने लगे हैंफिर तेरे स्वार्थी या निस्वार्थी बनने से फायदा ही क्या है || अजय माहिया
कुछ शेर ‘उन’ के नाम
कुछ शेर 'उन' के नाम
लहरों के यूं ही किनारे खुल गएसुना है उनको बागी हमारे मिल गए,ये उफनती हुई लहरें खामोश भी होंगीहमको भी कुछ नए सहारे मिल गए।
वो अब नहीं पूछा करते हैं हमें अक्सर अपनी बातों मेंकई मुद्दत के लिखे खत उन्हें हमारे मिल!-->!-->!-->!-->!-->…
टिप टिप टिप टिप बूंदे
टिप टिप टिप टिप बूंदेटिप टिप टिप टिप बूंदे ये मचा रही हैं शोरमन में कौंधा सा हुआ मेघ घिरे घनघोर।
टिप टिप टिप टिप बूंदे ये मचा रही हैं शोरपढ़ा लिखना ताक धर हो गए भाव विभोर।
टिप टिप टिप टिप बूंदे ये मचा रही हैं शोरधक धक कर दिल झूमता!-->!-->!-->!-->!-->…
मंजिल – कविता – ईश शाह
ए मुसाफ़िर थक गया है तो थोड़ा आराम कर ले,फिर उठ और अपनी मंजिल अपने नाम कर ले ।
इतना मत भागथोड़ा ठहराव कर ले,सब से हो गई हो तोअब खुद से बात कर ले ।
दिन तो बित ही गयासरगर्मी सी रात कर ले,जो चेहरे पर हंसी रखेउन शब्दों को साथ कर ले ।
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जिंदगी
कभी हास्य बद बनती है जिंदगीकभी शोक ग्रस्त बनती है जिंदगीकभी खेल खेलती है जिंदगीचलते सफर में कुछ याद आयाकभी सोचता हू यू हिसाब मत लेप्यारी मद होश जिंदगी।।
आखिर क्यों पुतिन यूक्रेन चाहते है
यही कारण है कि पुतिन यूक्रेन चाहते हैं:
यूक्रेन रैंक
यूरेनियम अयस्कों के सिद्ध पुनर्प्राप्ति योग्य भंडार में यूरोप में पहला;टाइटेनियम अयस्क भंडार में यूरोप में दूसरा और दुनिया में 10 वां;मैंगनीज अयस्कों के खोजे गए भंडार में दुनिया!-->!-->!-->!-->!-->…
कविता-बचपन
कविता-बचपन
कल की ही बात थी वो,जब गुड्डे-गुड्डियों का खेल था ।बस.. वो ही यह दिन था,जिसमे बचपन का मेल था ।।
वो आए,तुम गए,तुम आए,वो गए,फिर से सब आए ।काश वो घरौंदे बनाने, बचपन वाले दिन फिर आए ।।
वो माँ की गौद मे खेलना ,फिर उठकर भाग!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…