मैं अक्षी त्रिवेदी,राजस्थान की निवासी हुँ।मेरी रुचि साहित्य पढ़ने में हैं।हिंदी लेखन करने में ख़ुशी मिलती है और यह अपेक्षा करती हुँ की मेरे लेखन से सबको कुछ सीख मिलें।क़लम और पन्ने हमेशा से ही मेरे दोस्त रहे हैं।
नूर का लुत्फ़ उठा रहा राही,कहीं उसका आदी न हो जाए,चंचल किरने कर रही सामना,कहीं वक़्त से मुलाक़ात न हों जाए।
सत्य की गंगा बहते बहते,
कहीं मन का अकस न दिखा जाए,हो रहा कड़वे सच से सामना,कही ज़हन में ज़हर न भर जाए।
चाँद को देख मन हो!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…
रवि
शब्दों से रचा हुआ खेल कभी,कहाँ किसिको समझ में आया हैं,दूर से सब देख रहा वो,पर कभी क्या समझाने आया हैं?
मन से विचलित होकर वो भी,कहीं अपनी काया काली न कर जाए,देख रहा है वो तो कलयुग,कहीं इसका दर्शक न बन जाए।
डर लग रहा बस इसी बात!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…
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