उसको भी पता है कि ग़लत वही है,
अभिनव कुमार
लेकिन अटकी मुझपर ही सुई है,
कोई तो बतादे निष्पक्षता से,
क्या गलती मुझसे हुई है ।
वो ग़लत है,
अभिनव कुमार
फिर भी गदगद है,
कर रहा बस मनमर्ज़ी,
अब तो हद है ।
जमकर मुझे दुत्कार दिया,
अभिनव कुमार
मुझे जीते जी मार दिया,
एक नहीं यहाँ बहुतेरे हैं,
जिन्होंने बचपन से ये उपहार दिया ।
माथे पे लिखवाकर आया था,
अभिनव कुमार
कि मुंह की खाऊँगा सबसे ।
अब फ़र्क़ नहीं पड़ता जनाब,
आदत पड़ गई ये कब से ।
मुझपर दया बिल्कुल मत करना,
अभिनव कुमार
बिल्कुल बात मत मुझसे करना,
आदत पड़ जाएगी धीरे धीरे,
अब क्या जीना और क्या मरना ।
जमकर मुझे दुत्कार दिया,
अभिनव कुमार
मुझे जीते जी मार दिया,
एक नहीं यहाँ बहुतेरे हैं,
जिन्होंने मुझे ये उद्धार किया ।
शिकायतों की पाई-पाई जोड़कर रखी थी मैंने,
अभिनव कुमार
गिले शिकवों के भी रंगीन चश्मे हुए थे पहने,
वो आया और कसकर गले लग गया,
हिसाब बिगाड़ने वाले के क्या कहने, क्या ही कहने ।