बंदऊँ राम लखन वैदेही
तुलसी का ‘रामचरितमानस’ हिन्दी साहित्य का सर्वोत्तम महाकाव्य है जिसकी रचना चैत्र शुक्ल नवमी 1603 वि. में हुई थी। जिसको तैयार करने में 2 वर्ष 7 महीने तथा 26 दिन लगें ।यह काव्य अपनी प्रबंन्धात्मकता, मार्मिकप्रसंग विधान, चारित्रिक महत्तता , सांस्कृतिक गरिमा एवं गुरुता,गंभीर भाव प्रवाहसरस घटना संघटन,आलंकारिता,तथा उन्नत कलात्मकता से परिपूर्ण है।
संत तुलसीदास की अनेक रचनाओं में से बारह रचनाएं प्रमाधित है। रामलला नहछू, रामाज्ञा प्रश्न, जानकी मंगल, रामचरितमानस, पार्वतीमंगल और गीतावली प्रमुख है। रामचरितमानस में उन्होंने राम को जनमानस में स्थापित, समाहित और जीवंत कर दिया है। तुलसी के राम एक मर्यादा पुरुषोत्तम,श्रेष्ठ चरित्र, नीतिवान और जन आस्था का प्रतीक ा है और तुलसी की उदारता,अन्तःःकरण की विशालता एव भारतीय चारित्रिक आदर्श की साकार प्रतिमा है। तुलसी के राम बुद्धिमान,धर्मज्ञ, यशस्वी, प्रजाहितेषी, धर्मरक्षक और उच्चतम आदर्श के प्रतीक है।
मानस की काव्यसरिता का उद्गमस्थल कवि का वह ह्रदयरुपी मानसरोवर है जिसमें राम का यश रुपी जल भरा हुआ है। यही रामचरितमानस रुपी नदी लोक में आज भी जन जन के मध्य अबाध गति से प्रवाहित हो रही है। महाकाव्य के लिये जिस गुरुत्व,गांभीर्य और महत्ता की आवश्यकता होती है तुलसी के वो पूर्णरुपेण विद्यमान है, उसमें जीवनमूल्यों की जो विवेचना की गई है और प्रतिमान स्थिर किया गया है वो सार्वभोम और सार्वकालिक है। इन्हीं जीवनमूल्यों के कारण रातचरितमानस भारतीय साहित्य का गौरव ग्रन्थ बन गया है। तुलसी ने मानस में वह गुरुता उत्पन्न कर दी है जो विश्वसाहित्य के कुछ इने गिने महाकाव्यों में ही दिखलाई पडती है। मानस में जीवनमूल्यों की स्थापना ,चिन्तन, विवेचन तथा उपदेश के रुप में , तथा पात्रों के क्रियाकलापों के रुप में की गई है।
रामचरित मानस तुलसीदासजी का सुदृढ कीर्तीस्तम्भ है, जिसके कारण वे संसार में श्रेष्ठ कवि के रुप में जाने जाते है क्योकि, मानस का कथाशिल्प, काव्यरुप, अलंकार सयोजना,छंदनियोजना,और उसका प्रयोगात्मक सौंदर्य, लोकसंस्कृति,तथा जीवनमूल्यों का मनोवैज्ञानिक पक्षअपने श्रेष्ठरुप में है। मूलरुप से अवधीभाषा में रचित इस ग्रन्थ में विश्व की अनेक भाषाओं के शब्दों का समावेश है। यहाॅतक की उन्होंने एक चैपाई में ही एक से अधिक विदेशी भाषाओं का उपयोग है।
‘ गई बहोर गरीब नेवाजू सरल सबल साहिब रघूराजू ’
त्ुालसी ने अलंकारो, विशेषणों, और हिन्दी व्याकरण का श्रेष्ठ उपयोग किया है। उन्होने बडे ही स्वाभाविक ओर उचित ढंग से अलंकारों का प्रयोग किया है। उनका यह प्रयोग चमत्कार हेतु न होकर अपितु काव्य के भाव के उत्कर्ष को बढाने वाले और कलात्मक सौन्दर्य की समुचित अभिव्यक्ति के लिये किया है। जैसे निम्न चोपाई अनुप्रास अलंकार का श्रेष्ठ उदाहरण है।
अक्षय अखंड अनल अविनाशी, अतुल अमित घटघट के वासी
तुलसी ने अपने इस महाकाव्य में संज्ञा, सर्वनाम लिंग, वचन, क्रिया,काल, तथा अव्यय का सुदर उपयोग किया है। तुलसी भक्ति पद्धति के श्रेष्ठ वाहक रहे हैं उन्होनें ‘ एक राम घनश्याम हित चातक तुलसीदास’ कहकर चातक कोे अपनी भक्ति का परम आदर्श माना है।उनकी भक्ति में श्रद्धा और विश्वास का निगूढ समन्वय मिलता है। उन्होने राम को श्रेश्ठतम और अपने को लघुतम निरुपित किया हैं
राम सो बडौ है कौन , मोसौ छोटो कौन
राम से खरों है कौन मोसौ खोटो है कौन।
तुलसी ने विद्वानों और मानस मर्मज्ञों नेे मानस के सात खंडों को निम्नवत निरुपित किया है। बालकाॅड:- ब्रम्हविद्या अयोध्या काॅड:- राजविद्या अरण्य काॅडः- योग विद्या किष्किन्धा काॅड:ः- हट विद्या सुंन्दर काॅड:ः- सिद्धि विद्या, समयानुकूल सामर्थ के उपयोग की विद्या लंकाकाॅडः-ः शस्त्र और रणविद्या तथा उत्तरकाॅडः- आध्यात्म विद्या ।
तुलसी े के आमिर्भाव युग में धर्म, समाज,राजनीति,आदि के क्षेत्रों में सर्वत्र पारस्परिक वैषम्य एवं विभेद का बोलबाला था। धर्मिक वैमनस्य जड पकड रहा था दूसरी ओर शैव,शाक्त, ओर वैष्णव मत के अनुयायियों में भी पारस्परिक ईष्र्या द्वेश बढता चला जा रहा था।दक्षिण भारत में ता यह विद्वेष एव वैमनस्य इतना बढा कि, शिवकांची एवं विष्णुकांची तक का निर्माण हो गया। इन कठिन परिस्थतियों में तुलसी ने अपना समन्वयवाद प्रस्तुत किया। शैव एवं वैष्णव मत का समन्वय,र्वष्णव एवं शाक्त मत का समन्वय,रामावत संप्रदाय एवं पुष्टिमार्ग का सामन्वय, अद्वैतवाद एव ंविशिष्टाद्वैतवाद, ज्ञान और भक्ति, सगुण अैोर निर्गुण, नर और नारायण, द्विज ओर शूद्र , राजा और प्रजा, पारिवारिक एवं साहित्यक समन्वय की अद्भुत पीिकल्पना प्रस्तुत की तथा लोकनायक कहलाये।
रामचरितमानस तुलसी का एक चरित्र काव्य है। इसके नायक प्रभू श्री राम है जो तुलसी की उदारता,अन्तःकरण की विशालता,एव भारतीय चारित्रिक आदर्श की साकार प्रतिमा है। तुलसी ने राम के रुप में भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता की ऐसी आदर्शमयी ओर जीवन्त प्रतिमा प्रतिष्ठित की है जो विश्वभर से अलौकिक,असाधारण, अनुपम एवं अद्भुत है,जो धर्म एवं नैतिकता की दृष्टि से सर्वापरि है तथा जिसमें त्याग, विराग तथा साधु प्रक्तिके साथ साथ लोकहित ाएवं मानवता का साकार रुप विद्यमान है। तुलसी के राम एक आदर्श न?पुरुष ही नहीं है, अपितु वे एक ऐसे महान व्यक्त्वि सम्पन्न नायक है, जिनका कवि के रुप के कल्पना राज्य में एकाधिकार है। तुलसी के राम बुद्धिमान,धर्मज्ञ ,यशस्वी, तथा प्रजाहितेषी है। उन्होने अपनी भक्ति से परिपूर्ण होकर लिखा किः-
‘‘ जासु नाम सुमिरत इक बारा , उतरहिं नर बिनु सिंधु अपारा।
राम ही सुमिरत गावहिं रामहिं, संतन सुनहिं राम गुण गावहिं।
कर नित करहिं राम पद पूजा, रामजी भरोस हृदय नहीं दूजा।
तुलसी ने केवल एक ही प्रार्थना की है कि,
माॅगत तुलसीदास कर जोरे, बसहूॅ हृदय मन मानस मोरे।
बंदौ राम लखन वेदैही, जो तुलसी के परम सनेही।
उन्होने रामचरित मानस को भारतीय जन मानस के मन में प्रतिस्थापित कर दिया है।
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