मजदूरी केवल मजबूरी में नही की जाती है बल्कि दूसरों को मालिक बनाने के लिए भी की जाती है|
अज़य कीर्ति
जला दी होली लेकिन
अज़य कीर्ति
अहम् नहीं जला पाया
बचा लिया प्रह्लाद लेकिन
प्रेम नहीं बचा पाया संभालने की कोशिश की हज़ारों रिश्ते गुलाल के बहाने……………..
पर जाने क्यों, यूं वो संभल नहीं पाए |
जला दी होली पर अहम् नहीं जला पाया
अज़य कीर्ति
बचा लिया प्रह्लाद पर प्रेम नहीं बचा पाया
हो गई है,अब तो शाम भी ज़िन्दगी की
अब तक ईश्वर को नहीं पहचान पाया | तो अपने आप लग जाएंगे|
स्त्रियों ने हमेशा पुरूषों को दोषी ठहराया है|
अज़य कीर्ति
बात बनी ही कब थी जो इतनी जल्दी बिगङ गई
अज़य कीर्ति
राह पकङी ही कब थी जो इतनी जल्दी बिछङ गई
चाल चली ही कब थी जो इतनी जल्दी चिलक गई
ज़िन्दगी जी ही कब थी जो इतनी जल्दी निकल गई |
किताबों में लिखे शब्दों के भावों को समझने वाला व्यक्ति भगवान और समाज दोनों के नज़दीक़ होता है |
अज़य कीर्ति
मुझमें कवित्व तो नहीं है फिर भी तुक मिला लेता हूँ प्रिये
अज़य कीर्ति
रात को नींद नहीं आती फिर भी आँख लगा लेता हूँ प्रिये |