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नोटबंदी से भारत की अर्थव्यवस्था पर असर

8 नवंबर २०१६ को भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने काला धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ़ एक अनोखा युद्ध आरंभ करते हुए ५०० और १००० के नोटों को पूरी तरह से रद्ध करने का फ़ैसला सुनाया था.

नोटबंदी के इस फ़ैसले के लगभग ५० दिन बाद भी लोगों की तकलीफ़ों में कोई खासा सुधार नहीं आया है. हालांकी बड़े शहरों में नोट बंदी के कारण अर्थ-व्यव्स्था पर बहुत ज़्यादा प्रभाव नहीं पड़ा. इसकी वजह यह है कि बड़े शहरों में लोगों ने तथा व्यापारियों ने पी.एम मोदी द्वारा डिजिटल पेयमन्ट का दिखाया हुआ रास्ता अपना लिया. लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ आज भी आम जनता को स्मार्टफ़ोन से टेक्स्ट मेसेज तक भेजते नहीं आता, वहाँ डिजितल पेयमन्ट के माध्यम से निजी या व्यापारिक लेन-देन का सपना देखना ठीक वैसा ही है जैसे गांव के लोगों को हाथ से छोड़ कांटे-छुरी से खाना खाने की उम्मीद बांधना.

१२५ करोड़ों जनता में से आज भी ५०% से ज्यादा लोग गांव में रहते हैं, या तो उनके पास स्मार्ट फ़ोन नहीं है या तो उन्हें कार्ड द्वारा पेयम्न्ट करना नहीं आता. इसकी एक वजह यह भी है कि आज भी छोटे मोटे व्यापारी नकद में लेन देन करते हैं, उनका कहना है की कार्ड चेक या किसी और डिजिटल पेयमन्ट के माध्यम से लेन देन करने पर २% तक फ़ीस देनी पड़ती है. इसी फ़ीस से बचने के लिए ५०० और १००० के नोट बंद होने के बावजूद व्यापारी डिजिटल पेयमन्ट का रास्ता अपनाने से कतरा रहे हैं. जिसके कारण देश की आर्थिक वयव्स्था में बहुत ज्यादा असर पड़ रहा है.

भारत में कई लोग रोज मज़दूरी करके अपना घर चलाते हैं. लेकिन नोट बंदी के फ़ैसले के बाद न तो मजदूरी करवा रहे मिस्त्री के पास इतना कैश है कि वो सबकी मजदूरी दे सके और न ही ये लोग चेक या सीधे सीधे बैंक खातों मे पैसे डलवाना चाहते हैं. जिसके कारण छोटे व्यापारी जैसे सबज़ीवाले, फ़लवाले इत्यादियों के धंधों में बहुत ज्यादा मंदी देखने को मिल रही है. जो जनता हमेशा से नकद में ही लेन देन करती आई है, ऐसे लोग डिजिटल पेयमन्ट से या तो लेन देन करना नहीं चाहते या फ़िर प्रयाप्त सुविधाएँ और जानकारी उपल्बध न होने की वजह से लेन देन में बहुत कमी आ गै है, जिसका सीधा असर भारत की आर्थिक व्यवस्था देखने को मिल रहा है.

विश्व बैंक के पूर्व चीफ़ इकोनॉमिस्ट कौशिक बासू ने नोटबंदी के एक हफ़ते बाद भविष्यवाणी की थी कि इस फ़ैसले से अर्थव्यवस्था पर फ़ायदे की बजाय व्यापक नुकसान ही देखने को मिलेगा…

अपना दावा करते हुए कौशिक बासू ने कहा था “बड़े नोटों को रद्द करने का फ़ैसला भ्रष्टाचार पर चोट करने के इरादे से लिया गया है. इसके साथ ही सरकार को लगता है कि इस फ़ैसले से अरबों डॉलर की बेहिसाब रकम को अर्थव्यवस्था से खींचा जा सकता है. भारत के कुल करेंसी प्रसार में इन दो नोटों की मौज़ूदगी 80 प्रतिशत से ज़्यादा है. भारत में गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) अर्थव्यवस्था के लिए ठीक था लेकिन विमुद्रीकरण (नोटों का रद्द किया जाना) ठीक नहीं है. भारत की अर्थव्यवस्था काफ़ी जटिल है और इससे फायदे के मुक़ाबले व्यापक नुक़सान उठाना पड़ेगा.”
इसके अलावा अन्य अर्थशास्त्रियों के मुताबिक सैकड़ों हज़ारों आम लोगों के पास नकदी है लेकिन यहाँ से ब्लैक मनी बाहर नहीं आएगी. इन्हें प्रताड़ित होने का डर है. इन्हें लगता है कि वे सामने आएंगे तो इन्हें फ़ंसा दिया जाएगा. इन्हें नहीं पता है कि इस समस्या से निपटना कैसे है, इस्लिए एसा संभव है कि कुल मनी सप्लाई में अचानक कटौती हो जाए जिसके कारण इसका सीधा असर अर्थव्य्वस्था पर दिख रहा है.

हालांकि विवेक दहेजिया जैसे अर्थशास्त्री इससे सहमत नहीं है की नोट बंदी का कदम भारी जोखिम भरा है, उनका कहना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था का संचालन मॉनेटरी पॉलिसी के तहत हो रहा है. इसे इन्फ़्लेशन लक्षित संचालन के रूप में जानते हैं. यदि प्रचलन की करेंसी का एक हिस्सा और डिमांड डिपॉज़िट नष्ट हो जाते हैं तो रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया इसकी पूर्ति कर सकता है. इसे अर्थशास्त्र की भाषा में ओपन मार्केट ऑपरेशन कहा जाता है. आम भाषा में अगर समझाया जाए तो मान लीजिए कि किसी व्यक्ति के स्वामित्व वाले नकदी गोदाम में आग लग जाती है और पैसे का प्रसार थम जाता है तो ऐसी स्थिति में सेंट्रल बैंक के अर्थशास्त्री पैसों का प्रसार बढ़ाने के लिए कहा जाता है”

इसी बात को मद्दे नज़र रखते हुए, सरकार ने ८ नवंबर से हि ५०० और १००० के नोटों की जगह ५०० के नए तथा २००० के नए नोट संचालन में लाए. परंतू, क्योंकि सरकार के नियमों के अनुसार हफ़ते में अधिकतम केवल २५००० रुपए निकालने की अनुमती थी, जिसके कारण छोटे व्यापारी न तो अपने कर्मचारी या मजदूरों को मजदूरी देने में सफ़ल रहे बलकि व्यापार भी ठप होते देखा गया. इसका सीधा सीधा मतलब यही निकलता है कि सरकार चाहती है की ज्यादा से ज्यादा व्यापार तथा लेन देन डिजिटल पेयमन्ट के माध्य्म से हो ताकि ब्लैक मनी पर काबू पाया जा सके, जिसका ये मतलब भी निकलता है कि सारी लेन देन सफ़ेद हो जाएगी और पैसों की चोरी जैसे व्यापार में हुए मुनाफ़े को न दिखाना, व्यापार से संबंधित नंबरों की हेरा-फ़ेरी सब बंद हो जाएगी. अगर ऐसा हुआ तो सरकार का मानना है कि नोटबंदी से आम जनता को फ़ायदा ही फ़ायदा होगा.

तो ये कह पाना की नोटबंदी से भारत की अर्थव्यवस्था पर असर सरकार की लापरवाही से हो रहा है या फ़िर कुछ व्यापारियों को सरकार की नई योजना अपनाने में आना कानी की वजह से.

य़े तो आने वाला समय ही सपष्ट कर पाएगा की नोट बंदी से जनता को फ़ायदा हुआ या फ़िर नुकसान.

मयंक पाण्डेय ने जनरल बिज़नस्स से ग्रेजुएशन उत्तीर्ण किया है, एक यू.के की यूनिवर्सिटी से. हालांकी मैंने अपनी स्कूल की पढ़ाई इंडिया से की है, लेकिन बहुत समय विदेश में बिताने के कारण वहाँ से तौर तरीके रहन से भली भातीं परिचित हूँ. बचपन से ही लिखने का शौक था को…

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