देशलेख

‘‘ तंत्र ’’ से नाराज ‘‘गण’’ – गणतंत्र दिवस पर विशेष

                                 
भारतीय संविधान निर्माताओं ने जब संविधान का निर्माण किया था तो उनके मन में ऐ ऐसे संविधान की कल्पना थी जिसमें तंत्र ‘ाासन और गण जनता मिलजुल कर दे’ा के निर्माण में मिल जुल कर  े कार्य करें, लेकिन वर्तमान  स्थिति का ‘ाायद उन्हें अनुमान भी नहीं  
होगा कि,गण की  अपेक्षाओं पर तंत्र के खरा नहीं उतर पाने से स्थिति यह हो गई है कि, गण आक्रेा’ा में है, युवा पीढी  आहत है कि, वो दे’ा के निर्माण मे अपना यथा योगदान नहीं कर पा रही हेै।
                  दे’ा का 63 प्रति’ात युवा आज आक्रेा’िात है,  नाबालिक बच्चियों ,लडकियों और महिलाओं के साथ रोज हो रहे बालात्कार, चारो तरफ फैले भृ”टाचार,घेाटालों,हत्या,मॅहगाई और रसातल में जा रहे राजनैतिक मूल्यों से। लेकिन तंत्र है कि, बिल्कुल असहाय है वों इन पर अंकु’ा रखने में पूरी तरह नाकामयाब है। तंत्र सरकार एक कागजी सरकार  बन कर रह गई है। नेता केमरे के सामने आकर पूरी तरह बेलगाम होकर बयान दे रहे हेैं। विपक्ष का काम केवल जानबूझ कर संसंद को नहीं चलने दे ना रह गया है। उनके पास कोई मुद्धा नहीं रह गया है। अभी तक दे’ा के समक्ष जितने भी घेाटाले उजागर हुये है वे केवल मीडिया द्धारा ही उजागर किये गये है। जो काम विपक्ष का होना चाहिये था वो मीडिया कर रहा है।
             पिछले दिनों दिल्ली में हुई बालात्कार की उस जघन्य घटना ने जिसने पूरे दे’ा को हिला कर रख दिया था उसका नेतृत्व माआवादियों ने किया औेर किसी भी राजनेता या पार्टी की उपस्थिती को नहीं होने दिया। यद्यपि यह एक खतरनाक संदे’ा है  लेकिन बाबजूद इसके राजनैतिक नेतृत्व के अभाव औेर इच्छा’ाक्ति ने इन युवाओं को अनजाने ही सही माओवादियों के हाथों खेलने को मजबूर कर दिया।
              आज दे’ा नेतृत्व विहिन है। चाहे कहने को कितने ही भारी भरकम नाम कागज पर नजर आ रहे हों। दे’ा के लिये ‘ाहादत पर राजनीति, बालात्कार पर राजनीति, घोटालों पर राजनीति, यहाॅ तक कि, मॅहगार्ई पर राजनीति, ने दे’ा के युवा को दिगभ्रमित किया है। वो संविधान की भावना के विरुद्ध तंत्र के साथ खडा रहने को तैयार नहीं है। तंत्र खंडित है, लक्ष्य हीन है, दि’ााहीन है, कलु”िात है,कदाग्रही है, दे’ा का ‘ाीर्”ा नेेतृत्व चुप है वो किसी भी घटना से दुःखित नहीं होता, दे’ा उसकी असंवेदन’ाीलता को सहन कर रहा है। वो दे’ा े ‘गण’ की तरफ से मुॅह फेरे है,औेर संवादहीन है। उसे दे’ा के ‘गण’ जो युवा है, स्र्फूत है, दे’ा के लिये किसी भी स्थिति तक जाने को तैयार हैे उसे लेकर उसे दे’ा के विकास के आगे बढने में कोई रुचि नहीं है। इन हालातों में सिर्फ यही कहा जा सकता हैे कि,
  ए खुदा,
         इन हुक्मरानों को
               वही करने की तौफीक अता कर,
         जो वो कहते है।
 ए खुदा,
    इन भटके हुये परिन्दों और इंसानों को,
          घर की राह दिखा।
ए खुदा,
     आने वाले सालों मे हमें,
         सच की फसल बोने का हौसला दे,
           नेकी बोने की तौफीक दे,
ए खुदा,
      आने वाले सालों में,
          सब कहानियों औेर नज्मों में,
  सच्चाई, अमन और मुहब्बत उतार
    भटके हुये इन हुक्मरानों को,
              रास्ता दिखा।

     
 ं     

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