देशलेख

पेट्रोल की कीमतें और राजनैतिक मंच पर अभिनय

पिछले दिनों पेट्रोल की कीमतों में  बेतहा’ाा वृद्धि हुर्ई्र। स्वाभाविक हैे सभी राजनैतिक दलों का जनता के प्रति प्रेम उभर कर आ गया। सभी दल इस वृद्धि को  अपने अपने नफा नुकसान के आईने में तोलने लगें। इस पेट्ोल वृद्धि पर सबसे ज्यादा चिल्लपों मचाई प’िचम बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बेनर्जी ने। वे इस अवसर को सबसे पहिले अपने राजनैेतिक लाभ के रुप में भुनाने में लग गई गोया जनता की सबसे बडी हमदर्द वे हींं हों। इससे पहिले कि, वामदल अपनी कोई रणनीती तैयार करें ममता ने कोलकाता की सडकों पर रेली निकाल कर अपना विरोध प्रदर्’ान किया।

           पिछले दिनों पेट्रोल की कीमतों में  बेतहा’ाा वृद्धि हुर्ई्र। स्वाभाविक हैे सभी राजनैतिक दलों का जनता के प्रति प्रेम उभर कर आ गया। सभी दल इस वृद्धि को  अपने अपने नफा नुकसान के आईने में तोलने लगें। इस पेट्ोल वृद्धि पर सबसे ज्यादा चिल्लपों मचाई प’िचम बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बेनर्जी ने। वे इस अवसर को सबसे पहिले अपने राजनैेतिक लाभ के रुप में भुनाने में लग गई गोया जनता की सबसे बडी हमदर्द वे हींं हों। इससे पहिले कि, वामदल अपनी कोई रणनीती तैयार करें ममता ने कोलकाता की सडकों पर रेली निकाल कर अपना विरोध प्रदर्’ान किया।

साथ ही यह भी तय किया कि, इसे प्रत्येक ब्लाक तक ले जाया जाये। इससे पहिले कि, वो जनता के दुःखदर्द में अपनी सहभागिता का ढोल पीटतीें कि, इस बीच कोलकाता नाईट राईडर्स ने आई.पी.एल. प्रतियोगिता जीत लीं। ममता जनता का दुःखदर्द अचानक भूल बैठी और ‘ााहरुख औेर उसकी टीम को राईटर्स बिल्डिंग में आमंत्रित कर उनका स्वागत किया मानों कोलकाता नाइ्रटराईडर्स ने वि’वकप प्रतियोगिता जीती हो। पहिली बार ऐसा हुआ कि, किसी टीम के किसी घरेलू प्रतियोगिता के जीतने पर पूरी सरकार जुट गई हों। 

अरबों के मालिक ‘ााहरुख तथा करोडों में बिके हुये खिलाडियों पर सरकारी खजाना खोल दिया। ममताजी का’ा यह दरियादिली भारतीय हाॅकी टीम के ओलम्पिक में पात्रता हासिल करने में दिखाती तो ‘ाायद उन  खिलाडियों को कुछ ओैर अच्छा प्रदर्’ान करने की प्रेरणा मिलती। लेकिन ‘ाायद वो राजनैतिक लाभ का समय नहीं था। यह कुछ ऐसा ही हुआ कि दिनभर सार्वजनिक स्थल पर उपवास करने के प’चात् रात को चिकन बिरयानी खाना। ऐसा क्या हुआ कि, एक दिन में ही ममता का जनता दुःख काफुर हो गया। यदि उन्हें वास्तव में जनता से इतनी ही सहानुभूति थी तो वो इन प्रदर्’ानों की जगह अपने राज्य में लिया जा रहा वेट टैक्स कम कर देती। बहरहाल ये एक राजनैतिक  मंच पर किया गया अभिनय था।
            

यही हाल कमोबे’ा एन.डी.ए. ‘ाासित राज्यों का भी रहा। टी.वी. चेनलों के सामने दहाड दहाड कर जनता की परे’ाानियों को बखान करने वाले ये सूरमा अपने राज्य में लग रहा टेक्स कम करने पर या तो चुप्पी साध गये या फिर स्प”ट मना कर गये कि, वे अपने राज्य का टेक्स कम नहीं करेगें। इनमें म.प्र. के मुख्यमत्री श्री ’िावराज सिंह, पंजाब के मुख्यमंत्री श्री प्रका’ासिंह बादल, छत्त्ीसगढ  के मुख्यमत्री श्री रमन सिंह प्रमुख है। जबकि, काॅग्रेस ‘ासित राज्यों केरल, दिल्ली, तथा उत्तराखंड के मुख्य मंत्रियों ने अपनी सामथ्र्य अनूुसार टैक्स कम कर जनता को कुछ राहत प्रदान कीं। टेक्स कम कर राहत देना और टेक्स कम नहीं करना देानों ही राजनैतिक निर्णय है। जिन राज्य टेक्स कम नहीं किया वो जनता को संदे’ा देना चाहते है कि, केन्द्र सरकार बार बार कीमतें बढा रही है ऐसे में हम कहाॅ तक टेक्स कम करें यानि कीमत वुद्धि का ढीकरा सीधें सीधे केन्द्र सरकार के माथे। जिन राज्यों ने टेक्स कम किया वो जनता को बताना चाहती हैे कि, उन्हें जनता की परे’ाानी का अहसास है इसीलिये उन्होंने टेक्स को अपनी सामथ्र्य के अनुसार कम कर दिया है। इस बीच राहत की खबर यह है कि, केन्द्र सरकार ने भी इस बहती गंगा में हाथ धो लिये है ओैर कीमते कुछ कम करदी है।
                  जिस दे’ा के राजनैेतिज्ञ मूल्य वृद्धि को अपनी राजनीति और उसके लाभ के परिपे्रक्ष्य में देखे उसका क्या भवि”य होगां। वास्तव में इस पेटोल मूल्य वृद्धि के बारे में सभी राजनैतिक दल भली भाॅति जानते थे कि, मूल्य वृद्धि करना आव’यक है, लेकिन उनके लिये जनता की सहानभूति बटोरने का इससे अच्छा मौका कोई औेर हो ही नहीं सकता था। इन राजनैतिक दलों के लिये मूल्य वृद्धि राजनैेतिक लाभ के उपार्जन का सबसे सुगम साधन है।             

संसद में जब मूल्य वृद्धि पर चचा्र की बात आती है ओर सरकार उस पर चर्चा के लिये सहमत हो जाती है तो इन राजनैतिक दलों की माॅग चर्चा उस धारा के अन्र्तगत कराने की होती है जिसमें मतदान की व्यवस्था होती हैं। जब जब बिना इस धारा के सदन में चर्चा हुई है संसंद सदस्यों की उपस्थिति काफी कम हो जाती है। और चर्चा मात्र एक औेपचारिकता होकर रह जाती है। इस बार पेट्र्ेाल मूल्य वृद्धि पर यही देखने को मिला। सभी द लवाम ओर दक्षिण पंथी  सभी दलों ने चाहे वो सरकार का हिस्सा हों या न हों मजबूरीव’ा बंद का आयोजन किया औेर उसमें बढ चढ कर हिस्सा लिया औेर जनता को यह संदे’ा देने की को’िा’ा की कि, वे ही उसक सच्चे हमदर्द है। सरकार के प्रमुख सहयोगी दल के नेता करुणानिधि तो अतिरेक में यहाॅ तक कह गये कि, हम जनता के हित में सरकार से समर्थन तक  वापिस ले सकते है। हाॅलाकि, बाद में वे पूरी तरह हेयरपिन टर्न लेकर पलट गये। आखिर हो भी क्यों न सत्ता सता सता कर प्राप्त होती है। सत्ता सुख से वंचित होने की कल्पना करना भी अत्यन्त कठिन है।
            

  विगत कुछ दिनों में हमने पेट्र्ोल के मूल्यों में हुई मूल्य वृद्धि पर सभी दलों के  राजनेैतिक मंचों पर अभिनय को देखा  किस राजनैतिक रंगमंच पर भीड अधिक जुटी या किसका अभिनय अच्छा रहा ये तो आने वाला वक्त ही बतायेगा। वैसे ये कोई आखिरी मंचन नहीं था। अभी औेर मौके आऐगे , दिल्ली अभी बहुत दूर है। राजनैेतिक मंच और अभिनेता मंचन के लिये तैयारी करने में जुट गये है। स्क्रिप्ट्स् लिखना ‘ाुरु हो गया है। जनता के सच्चे हमदर्द बताने के लिये बयानों रुपी ग्लिीसरीन की खेप भी पहुॅच रहीं है।, सरकार अपने काम काज या निर्णयों के रुप में जो स्क्रिप्ट लिखेगी मंचन उसी पर होगा। वास्तविकता यह हेै कि, जनता की परे’ाानियों से किसी को कुछ भी नहीं लेना देना। एक दो दिन बाद सब कुछ पहिले जैेसा सामान्य हो जायेगा।

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