किंकर्तव्यविमूढ़ – कविता- ईश शाह
जब मैं कुछ नहीं करता हूँतब मुझे दोषी करार दिया जाता है।जब कुछ करूँ तो फिर मेरा क्या हश्र होगा?मैं डरता हूँ नजरों के अंधियारो सेडरता हूँ शब्दों की तलवारो सेसहमा हूँ रिश्तों के बटवारे मेंपला हूँ आँसुओ की आँखों मेंचार आँखे वाले मेरे जीवन के!-->…